यह एक पुराना भूत है जो अकादमी के खंडहरों में घूमता रहता है। गाहे-बगाहे कभी अशोक चक्रधर की नियुक्ति पर, कभी गबन पर, कभी डॉ. प्रेम सिंह समेत कई मूर्धन्य लेखकों का अकादमी छोड़े जाने, राजनितिक दबाव पर और अब सम्मान के नाम पर यह भूत अवतरित हुआ है। लेकिन इस बार इस भूत ने अकादमी के गलियारों में हलचल तो ला ही दी साथ ही साहित्यकारों ने भी अकादमी की औकात बता दी है।
शलाका सम्मान हिंदी अकादमी को ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। हिन्दी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में समर्पित भाव से काम करने वाले विद्वानों तथा मूर्धन्य साहित्यकारों के प्रति अपने आदर और सम्मान की भावना को व्यक्त करने के लिए हिन्दी अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष यह सम्मान दिया जाता है। इस बार इस प्रतिष्ठित सम्मान सहित आठ पुरस्कार राष्ट्रीय कर दिए गए और इस बार से एक ख़ास परिवर्तन किया गया है जिसके तहत अब दिल्ली ही नही वरन दिल्ली से बाहर के साहित्यकारों को भी यह सम्मान दिया जा सकता है साथ ही पुरस्कार की रकम भी बढाकर २ लाख कर दी गयी।
इसी क्रम में अकादमी ने वर्ष २००९-१० शलाका सम्मान प्रो. केदारनाथ सिंह को देने की घोषणा की। इसके साथ ही अन्य पुरस्कारों के लिए चयनित नामों की सूची जारी की गयी जिसमे पुरूषोत्तम अग्रवाल, रेखा जैन, पंकज सिंह, गगन गिल और विमल कुमार शामिल हैं। आगामी 23 मार्च को यह सम्मान दिए जाने थे जिसमे महाश्वेता देवी सिरकत करने वाली थीं।
लेकिन तभी ऐसा हुआ जो अकादमी के इतिहास में आज तक नही हुआ था। केदारनाथ सिंह ने सम्मान लेने से इंकार तो किया ही बाकी अन्य लोगों ने भी इंकार कर दिया। असल में यह एक पुराना भूत है जो अकादमी के खंडहरों में घूमता रहता है। गाहे-बगाहे कभी अशोक चक्रधर की नियुक्ति पर, कभी गबन पर, कभी डॉ. प्रेम सिंह समेत कई मूर्धन्य लेखकों का अकादमी छोड़े जाने, राजनितिक दबाव पर और अब सम्मान के नाम पर यह भूत अवतरित हुआ है। लेकिन इस बार इस भूत ने अकादमी के गलियारों में हलचल तो ला ही दी साथ ही साहित्यकारों ने भी अकादमी की औकात बता दी है। दरअसल, अकादमी ने हिंदी के वरिष्ठ कथाकर कृष्ण बलदेव वैद को उनकी कृति 'सुअर' के लिए वर्ष 2008-09 के शलाका सम्मान के लिए नामित किया था। फिर अचानक उनका नाम काट दिया गया और किसी को भी यह सम्मान नहीं दिया गया। असल में एक टटपुजिये से छुटभैये नेता ने वैद के चयन की शिकायत "दिल्लीवाहिनी" शीला दीक्षित से कर दी थी। नेता का आरोप था कि वैद के लेखन में अश्लीलता है और 'सुअर' में जो अभद्र भाषा व नारी जाति का अपमान किया गया है वह एक सभ्य समाज के लिए किसी भी दृष्टि से शोभनीय नहीं है। वैद की कहानी देश में बालिकाओं के जन्म दर बढाने को लेकर चल रही सरकारी व गैर सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा चलाये जा रहे अभियान के विरूध्द है। इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री से इस तरह की कृतियों को दिए जाने वाले सम्मान को खारिज करने व जांच की मांग की थी। आखिरकार वैद का नाम फ़ाइनल नही हो पाया। लेकिन अब इस मामले ने तूल पकड़ लिया है।
केदारनाथ सिंह तथा अन्य के सम्मान नही लेने के निर्णय का समर्थन करते हुए साहित्यकार राजेन्द्र यादव ने कहा कि शलाका सम्मान की परंपरा को ही खत्म कर देना चाहिए। इसकी गरिमा पर जो धब्बा लगा है, उससे हिन्दी साहित्य के विद्वान बेहद आहत हैं। साहित्यकार विमल कुमार का मानना है कि अश्लीलता का बहाना बनाकर किसी साहित्यकार को अपमानित करने की हरकत को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस प्रकरण से पुरस्कारों के चयन में राजनीति की बात खुलकर सामने आ गई है। लेकिन आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का कहना है कि किसी लेखक की रचना के कुछ अंश पढ़कर इस तरह के आरोप लगाना कतई उचित नहीं है। पुरस्कार लेखक के समग्र रचनाकर्म को आधार बना कर दिया जाता है। अकादमी के सम्मान को ठुकराने वाले साहित्यकारों में एक पंकज सिंह ने बताया कि समिति द्वारा लिए गए निर्णय की गरिमा की परवाह किए बगैर अकादमी ने पूरी तरह से मनमानी करते हुए एक वरिष्ठ कथाकार को अपमानित किया है।
इस तरह यह साफ है कि इस मुद्दे पर साहित्यकार एकजुट हो रहे हैं। इतना ही नहीं, केदार नाथ सिंह के सम्मान के ठुकराए जाने के बाद कई अन्य साहित्यकारों ने भी अकादमी की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाते हुए सिंह की कतार में खड़े हो गए। प्रसिद्ध साहित्यकार प्रियदर्शन ने भी साहित्य कृति सम्मान नहीं लेने की घोषणा की है। इसी बीच महाश्वेता देवी ने भी कार्यक्रम में सिरकत करने से इंकार कर दिया है। इन सब विवादों से आजिज आकर हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान कार्यक्रम को टाल दिया है। यह पुरस्कार अब तीन महीने बाद फिर से एक नए सिरे से घोषित किए जाएंगे। यह भी कयास लगाया जा रहा है कि इन पुरस्कारों की सूची में कृष्ण बलदेव वैद का नाम भी शुमार किया जा सकता है। फिलहाल यह सम्मान टलने से चल रही रस्साकशी पर तो विराम लगता नजर आ रहा है , लेकिन "अकादमी का हिंदी भूत" कभी भी फिर जाग सकता है।
केदारनाथ सिंह को श्लाका सम्मान मिलना हर्ष की बात है.
aaj ka jansatta dekhen. baldev jee. ne kuch gambheer baten kahin hai. vaise jab tak sahitya ke sammanon me rajneetik dakhal khatam nahin hota. vivad hote rahenge, ye bhoot aata rahega.