Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: अक्तूबर 2013

उनकी भूख

उनकी भूख
नहीं मिटती रोटी से
सब्जी-चावल-दाल खाकर
नहीं पेट भरता उनका
उनकी प्यास का पानी से
नहीं है रिश्ता
उन्हें जायका लग चुका है
ताजे गोश्त का
गरमागरम रक्त का
उन्हें पसंद आते हैं
ढेर लाशों के
भूख उनकी वोटों की है..


सिक्कों की खनकती आवाजें
और एक खास किस्म की कुर्सी
जिसके पाए हड्डियों के 

चूर्ण से बने हैं
उसके बीचोंबीच भरा है
मासूमों का मुलायम मांस
उनकी रूह से मवाद
रिसता है दिनरात
उनके हाथों में कानून की
किताबें है
और जेब में रिवाल्वर
रातें उनकी साजिशों में गुजरती है
और फिर धीरे-धीरे
दंगे की आग सुलगती है।