Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: फ़रवरी 2013

प्रेम की ये रात


प्रेम की इस रात में 
कल के चमकते उजालों के लिए
मैंने प्रेम किया
अपने सिरहाने रखे उस फूल से
जिसने रात भर की कसमसाहट को
अपने यौवन की सलवटों से बदस्तूर पिघलते देखा 






एक सरगोशी हम पर तारी है
जो न पिघलती है न टपकती है 
बस रात भर बरसती है 



शब्द शर्मिंदा हैं 
भाषा बेचैन है 
मौन है तो मौन ही बोलेगा 

मौन की भाषा है 
शब्द नहीं बोलेगा।