भारत-भारती संस्थान द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की ११३वीं जयंती के मौके पर प्रख्यात जनकवि त्रिलोचन को मरणोपरांत 'सुल्तानपुर रत्न' से विभूषित किया गया। त्रिलोचन जी का मूल नाम वासुदेव सिंह था और जन्म सुल्तानपुर के कठघरा पट्टी में २० अगस्त, १९१७ को हुआ था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए अंग्रेजी की एवं लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की डिग्री प्राप्त की थी। कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे। उन्हें हिंदी सॉनेट का साधक माना जाता है। त्रिलोचन शास्त्री को 1989-90 में हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था। उनके कविता संग्रह 'ताप के ताये हुए दिन' के लिये 1981 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। त्रिलोचन शास्त्री 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।
शास्त्री बाजारवाद के धुर विरोधी थे। हालांकि उन्होंने हिंदी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन किया। उनका कहना था, भाषा में जितने प्रयोग होंगे वह उतनी ही समृद्ध होगी। शास्त्री ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया। वह नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक थे। 9 दिसंबर, 2007 को ग़ाजियाबाद में उनका निधन हो गया।
वही त्रिलोचन है
वही त्रिलोचन है, वह-जिस के तन पर गंदे
कपड़े हैं। कपड़े भी कैसे-फटे लटे हैं
यह भी फ़ैशन है, फ़ैशन से कटे कटे हैं।
कौन कह सकेगा इसका यह जीवन चंदे
पर अवलम्बित् है। चलना तो देखो इसका-
उठा हुआ सिर, चौड़ी छाती, लम्बी बाहें,
सधे कदम, तेजी, वे टेढ़ी मेढ़ी राहें
मानो डर से सिकुड़ रही हैं, किस का किस का
ध्यान इस समय खींच रहा है। कौन बताए,
क्या हलचल है इस के रुंधे रुंधाए जी में
कभी नहीं देखा है इसको चलते धीमे।
धुन का पक्का है, जो चेते वही चिताए।
जीवन इसका जो कुछ है पथ पर बिखरा है,
तप तप कर ही भट्ठी में सोना निखरा है।
(कविता कोष से साभार)
त्रिलोचन का यह स्मरण अच्छा लगा
are ajai bhai aap? kya halchal?
-uma