बहुत दिनो से कुछ पढ़ नहीं। अपने पढ़ने की भुख को मिटाने के लिए कुछ खोज रहा था ठीक उसी तरह जैसे कुत्ता भुखा होने पर हड्डी खोजता है। तभीं मुझे इस्मत चुग़ताई की एक किताब मिली `मासूमा´। जिसकी शुरूआत एक कविता से हुई है और खत्म भी कविता से है। और किताब के बारे में ज्यादा तो नहीं बता सकता क्योंकि अभी मैंने पढ़ना शुरू ही किया है मगर मैं आपको वो दोनो कविता पेश करना चाहता हूं-
किताब जहां से शुरू होती है-
चार महीने का मकान का किराया
नौकरों की तन्ख्वाह-बनिये का कर्ज
बिजली का बिल-धोबी की धुलाई
बच्चों की फीस-पानी सर से गुज़र जाता है
मैं डूबते-डूबते उभरकर देखती हूं
मेरी सोलह बरस की जीती जागती बेटी
नौ-उम्र सहेलियों के साथ रस्सी कूद रही है।
और किताब के अन्त में-
मेरी सोलह बरस की जीती जागती बेटी
नौ-उम्र सहेलियों के साथ रस्सी कूद रही है
ऐ काश मैं वापस उसे अपनी कोख में छुपा सकती !
bahut khoobsurat. aise hi padhte rahiye aur humse share karte rahiye. chugtai ki ye kahani aur uski kavita hunare samay ki vidambna hi kahi ja sakti hai.
हम उम्मीद करते हैं की जावेद जब सफ़र से वापस आयेंगे तो हमे मासूमा के बारे में तक्शीम से बताएँगे. वैसे जावेद का पहले उदय प्रकाश फिर मंटो-प्रेम सर चढ़ के बोला आज कल इस्मत आपा को पढ़ा जा रहा है... बढ़िया है
१. आशीष महर्षि:- ये पेशे से 'पत्रकार' है , इनकी विषय को लेकर सोच काफी विश्त्रित है ,इन्होने इस विषय के उपर काफी गहन अध्यन किया है .इनके शोध का प्रारूप को देखकर लगता है की यह इन मुदो पर जिसमे सरकार के दुआर विस्थापन को लेकर आम आदमी की जिंदिगी काफी उतर - चदाव से भरा परा है उनपर इनके काफी पैनी नज़र है/
ये बिशेष रूप से मध्य प्रदेश के दो जिलों में अपने अध्यन को पूरा करना चाहते है १. खंडवा २. देइदौरि /
अंकारा के सम्बन्ध में इन्होने इन दो जिलों की पूर्ण जानकारी दी है . जिसके अंतर्गत सरकार दोउरा इन जगह पर किये गए विस्थापन से हुई बच्चो के अधिकार का हनन के बारे मे जिक्र किया गया है /
अ) शोध के अंतर्गत 'सरकारी' और 'गैर सरकारी संगठन' के कार्यो की जाँच भी इनकी शोध में शामिल है .