Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: 2013

खतरनाक आदमी

ड्राइवर सीट पर एक खतरनाक
आदमी बैठा है
इस सीट तक वो बेहिसाब
तिकड़म भिडाकर पहुंचा है
उसे प्राप्त है आशीर्वाद
अपने आकाओं का
जिन्हीने अयोग्य होते हुए भी
उसे सौंप दी है चाबी
उसका पास न तो 'लाइसेंस' है,
न ही अनुभव
उसकी सारी डिग्री भी
फर्जी हैं
हालाँकि देखने में नहीं लगता
उसमे कोई कमी है.
बहुत चालाक है वो,
सीट के सभी दावेदार
उसने साज़िश के तहत
ख़त्म कर दिए हैं
गाडी में बैठी सवारियां
सलामत रहें
इसके लिए जरूरी है
उसे गाडी से उतारना ।

उनकी भूख

उनकी भूख
नहीं मिटती रोटी से
सब्जी-चावल-दाल खाकर
नहीं पेट भरता उनका
उनकी प्यास का पानी से
नहीं है रिश्ता
उन्हें जायका लग चुका है
ताजे गोश्त का
गरमागरम रक्त का
उन्हें पसंद आते हैं
ढेर लाशों के
भूख उनकी वोटों की है..


सिक्कों की खनकती आवाजें
और एक खास किस्म की कुर्सी
जिसके पाए हड्डियों के 

चूर्ण से बने हैं
उसके बीचोंबीच भरा है
मासूमों का मुलायम मांस
उनकी रूह से मवाद
रिसता है दिनरात
उनके हाथों में कानून की
किताबें है
और जेब में रिवाल्वर
रातें उनकी साजिशों में गुजरती है
और फिर धीरे-धीरे
दंगे की आग सुलगती है। 

चूल्हे की आंच

पिछले दिनों गांव जाना हुआ तो कल्लू दादा के घर थोड़ी देर के लिए रुका। घर में करीब दस साल की उनकी पोती संगीता चूल्हे पर रोटियां बना रही थी। उसके चार छोटे भाई-बहन भूख से बिलबिला रहे थे और रोटियों का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। दो साल पहले संगीता की मां का देहांत हो गया था। अब तक पता नहीं चल पाया है कि उसे क्या हुआ था। लोग बताते हैं कि उसे अचानक पेट में दर्द हुआ। पड़ोस के गांव में एक झोलाछाप डॉक्टर को उसे दिखाया और रात में ही उसकी सांसें थम गईं। मां की मौत के बाद संगीता पर ही घर के कामकाज की सारी जिम्मेदारी आ गई। उसका ज्यादातर वक्त चूल्हा चौका और नल से पानी लाने में ही गुजरता है। इतना करने के बाद भी जरा सी गलती पर बाप का कोप भी झेलना पड़ता है। उसकी हालत देखकर एक अजीब सी बेचैनी होने लगी। जिस उम्र में उसके हाथ में कलम-किताब होनी चाहिए, उस उम्र में चूल्हे की आंच से उसके तपते बचपन को देखकर मैं भीतर से कराह उठा।

कल्लू दादा के घर उस दिन मेहमान आए थे। संगीता ने घर में पड़े आलुओं की दो तरकारी बना दी। सब्जी अब उनके यहां कभी-कभी ही बनती है। चटनी के साथ रोटी खाकर ही उनका पेट भरता है। उस दिन सब्जी बनी देख संगीता के छोटे भाई-बहन जिद करने लगे। संगीता ने सबकी कटोरी में 1-2 आलू के टुकड़े और खूब सारी तरी डाल दी। बच्चे मजे से खाना खाने लगे। सबके खाने के बाद संगीता के लिए सब्जी नहीं बची। उसे चटनी रोटी खाकर ही पेट भरना पड़ा। कल्लू दादा की गिनती पहले गांव के सबसे रईस किसानों में होती थी। 40-45 बीघा खेत से इतना हो जाता था कि जिंदगी आराम से चलती थी और काफी बच भी जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों से पड़ रहे सूखे ने बुंदेलखंड के तमाम किसानों की तरह उन्हें भी दाने-दाने को मोहताज कर दिया है। अब उन्होंने अपनी ज्यादातर खेती गिरवी रख दी है और बांदा में चौकीदारी कर रहे हैं।

पूछने पर उन्होंने बताया कि बारिश न होने पर अब खेती से लागत निकालने में भी मुश्किल होती है। ऐसे में बच्चों को पालने के लिए उन्होंने खेतीबाड़ी छोड़ दी और चौकीदारी करना ही बेहतर समझा। उन्होंने बताया कि कुछ वक्त बाद वे गांव भी छोड़ देंगे और बांदा में मजदूरी कर बच्चों को पढ़ाएंगे। कल्लू दादा से बात करने के बाद मुझे अखबार में छपी एक खबर याद आ गई। खबर में बताया गया था कि एक किसान ने खेत में जाकर जब अपनी फसल की हालत देखी तो वह बेसुध हो वहीं गिर पड़ा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। कुछ चीजें बाहर से देखने में शांत नजर आती हैं लेकिन उनके भीतर अथाह लहरें हिलोरें मार रही होती हैं। बुंदेलखंड के गांव भी ऐसे ही हैं। बाहर से देखने में शांत लेकिन हर घर में दुखों का बेहिसाब सिलसिला। दिल्ली लौटने पर मेरे जेहन में कई दिनों तक संगीता का मासूम चेहरा घूमता रहा।

The feeding frenzy of kleptocracy - The Hindu

The feeding frenzy of kleptocracy - The Hindu

प्रेम की ये रात


प्रेम की इस रात में 
कल के चमकते उजालों के लिए
मैंने प्रेम किया
अपने सिरहाने रखे उस फूल से
जिसने रात भर की कसमसाहट को
अपने यौवन की सलवटों से बदस्तूर पिघलते देखा 






एक सरगोशी हम पर तारी है
जो न पिघलती है न टपकती है 
बस रात भर बरसती है 



शब्द शर्मिंदा हैं 
भाषा बेचैन है 
मौन है तो मौन ही बोलेगा 

मौन की भाषा है 
शब्द नहीं बोलेगा।