मेरी नई ग़ज़ल
जिन के साथ खेल गुजारा था जमाना,
उनकी नज़र में हम अब मेहमान हो गए।
जिन दोस्तों के साथ बचपन को गुजारा,
सिद्दत के बाद वे ही अनजान हो गए।
घर से तो गए दूर शहर काम के लिए,
हम गांव छोड़ खुद ही बेनाम हो गए।
गांव की वो हरियाली बाग घट गए,
अब गांव भी शहर से विरान हो गए।
बदली हुई है नज़रें बदला है ज़माना,
हम अबकी गांव आके हैरान हो गए।
पुछे न कोई मुझसे क्या हाल तुम्हारा ,
अपनों के बीच अपनी पहचान खो गए।
-राजेश कुमार
Palestine
-
The West inks red lines
filled with beheaded kids,
of people peeled inside out,
And the rest of us hung dry.
Will the winds turn?
If they do, what become...
bahut badiya ghazal......
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
aapki pachan logon ke dilon mein kkyam hai. nirash na hon. bahoot aachi shuruwat.is umeed mein ki aage bhi likhte rahengay