Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: कर रहे थे मौज-मस्ती ............

कर रहे थे मौज-मस्ती ............

                           -- -डॉ० डंडा लखनवी

कर  रहे  थे    मौज-मस्ती   जो  वतन को  लूट के।
रख  दिया  कुछ   नौजवानों ने उन्हें कल कूट के।।

सिर छिपाने की जगह सच्चाई  को मिलती नहीं,
सैकडों    शार्गिद    पीछे   चल   रहे  हैं  झूट   के।।

तोंद  का   आकार   उनका  और  भी बढता  गया,
एक   दल   से  दूसरे    में  जब गए  वे  टूट   के।।

मंत्रिमंडल  से उन्हें जब किक  लगी,  ऐसा लगा-
आशमा  से   भू   पे आये  बिन  वे  पैरासूट  के।।

ऊंट   समझे  थे बुलन्दी  में   न  उनसा   कोई भी,
पर्वतों  के   सामने  जा    होश   गुम  हैं  ऊंट के ॥

शाम    से     चैनल  उसे    हीरो   बनाने  पे  तुले,
कल सुबह आया जमानत पे जो वापस छूट के।।

फूट    के    कारण   गुलामी   देश  ये   ढ़ोता  रहा-
तुम भी लेलो कुछ मजा अब कालेजों से फूट के।।

अपनी  बीवी  से  झगड़ते  अब नहीं  वो भूल कर-
फाइटिंग में  गिर गए कुछ दाँत जबसे  टूट  के।।

फोन  पे  निपटाई  शादी  फोन ही    पे  हनीमून,
इस क़दर  रहते  बिज़ी  नेटवर्क  दोनों  रूट  के॥

यूँ   हुआ   बरबाद  पानी   एक  दिन  वो  आएगा-
पाँच  सौ  भी  कम  पड़ेंगे  साथियों   दो  घूंट के।।

फूट   के   कारण    गुलामी    देश ये   ढ़ोता  रहा-
तुम भी लेलो कुछ मजा अब कालेजों से फूट के।।

Comments :

6 comments to “कर रहे थे मौज-मस्ती ............”
mridula pradhan ने कहा…
on 

bahut sunder kavita.

Amitraghat ने कहा…
on 

हा..हा..हा..बहुत बढ़िया..."

Shekhar Kumawat ने कहा…
on 

बहुत बढ़िया

ACHA HE

Udan Tashtari ने कहा…
on 

शाम से चैनल उसे हीरो बनाने पे तुले,
कल सुबह आया जमानत पे जो वापस छूट के।।


वाह वाह!! बहुत खूब!!

रोहित ने कहा…
on 

bahut accha.
maja aa gaya padhkar!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…
on 

डॉ० डंडा लखनवीजी
हास्य व्यंग्य के बहाने बहुत जिम्मेवारी के साथ सधे हाथों से लेखनी चलाई है आपने ।
पूरी हज़ल शानदार कही है ।
क्या हक़ीक़तबयानी है…
"शाम से चैनल उसे हीरो बनाने पे तुले,
कल सुबह आया जमानत पे जो वापस छूट के।।"

और , पानी की महत्ता बताता और
भविष्य के लिए चेतावनी देता हुआ यह शे'र …

"यूँ हुआ बरबाद पानी एक दिन वो आएगा-
पाँच सौ भी कम पड़ेंगे साथियों दो घूंट के।।"
वाहजी बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

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