आमिर खान ने अभी-अभी एक शिगुफ़ा छोड़ा है की किसी गाने के हिट होने का उसके गीत या गीत के बोलों से कोई लेना-देना नहीं होता है. इस वक्तब्य के पीछे आमिर साहेब की क्या मनसा है वह जाहिर नहीं होती है लेकिन यह वक्तब्य हमारे समय या इतिहास के महान गीतकारों को झूठलाने की कोशिश है. एक छोटा सा विवाद अगर आप लोगों को याद हो "इब्न-बतूता" जो इन दिनों सुर्ख़ियों में रहा है जिसमे गीत के बोल को चुराने का आरोप हमारे समय के हस्ताक्षर गुलज़ार के ऊपर लगाया गया मैं इस विवाद पर कुछ भी नहीं कहूँगा क्योंकि सर्वेश्वर भी मेरे अज़ीज़ हैं लेकिन ये बताना चाहूँगा की ये विवाद सिर्फ गीत के बोलों की वजह से ही मुद्दा बन गया.
आज हम इस दौर के गीतों की तमाम ख़ूबसूरती के बावजूद गीतों के कंटेंट के कारण उनकी आलोचना करते रहते है और दुहाई देते नहीं थकते कि पहले गीतों में रस हुआ करता था ऐसा रस जो लोगों के दिलों दिमाग पर छा जाता था आज वो नहीं हो रहा है
मैं संगीत पक्ष को नकार नहीं रहा हूँ क्योंकि इसी वजह से वह कर्णप्रिय बन सके लेकिन अगर कंटेंट नहीं होगा तो लाख संगीत अच्छा हो लोगों कि जुबान पर लम्बे समय तक नहीं बना रह पायेगा कई ऐसे गीत हैं जो संगीत के मोहताज नहीं हैं भरी महफ़िल में गुनगुना दिया जाए तो लोग झूम उठते हैं
बहुत सुन्दर विचार है धन्यवाद्
BAHUT HI SUNDER PARASTITI...
गजब लिखते हो साहब. मजा आ गया आपके ब्लॉग का चक्कर काट कर. हर विषय पर अच्छी पकड़ है. अच्छे लेखन के लिए मेरी बधाई स्वीकार करे. कभी समय निकाल कर मेरी गुफ्तगू में भी शामिल होने का प्रयास करे.
www.gooftgu.blogspot.com
आमिर का बड़बोलापन जगजाहिर है. आपकी बात से सहमत!
amir khan apni mahtwta sabit karna chate the