मकबूल को ही क्यों, मुझे भी देवी-देवता नंगे दिखते थे…थे इसलिए कि आजकल नंगई देखने के मेरे पास ढेर सारे विकल्प हैं। कुछ उसी तरह जैसे सरस्वती के बाद मकबूल की नजर माधुरी पर गड़ गयी, भले ही दोनों को देखने के उनके भाव अलग-अलग हो।
मैं यहां बता दूं कि जब न चाहते हुए भी मुझे हिन्दू देवियां नंगी दिखती थी, तब मैं चौथी-पांचवी-छठी-सातवीं-आठवीं-नौवी-दसवीं में पढ़ता था और ब्रह्यचर्य के सिद्धान्तों पर खरा उतरने की कोशिश करता था। मेरी भाभियां मुझे अपना सबसे अच्छा देवर, बहने सबसे अच्छा भाई, मायें अच्छा बेटा और गांव सीधा लड़का मानता था। मैं अपने सहपाठियों और दोस्तों के इश्कबाजी के जांबाज किस्सों को नजरअंदाज करता अकेले रहना पसंद करता था। उस घर में जहां देवी-देवताओं के फोटो टंगे रहते थे और मेरे पढ़ने का टेबल भी।,खूब पूजापाठ किया करता था और भगवान से मांफी मांगते हुए उनकी बगल में खड़ी देवियों को चोरी से निहारता भी था।
भगवान से डरता भी था और अपने उपर खूब हंसता भी।
राधा की लहराती कमर को निहारते हुए जब मेरी निगाहें राधा से टकराती थी-तो उनसे मांफी मांग लेता था, लेकिन मन ही मन कृष्ण से कहता-ये दिमाग भी तो तुन्हें ही बनाया! लेकिन कोई मुझे ये बताए कि क्या देवी-देवताओं को गौर से देखना कोई गुनाह है। जैसा कि अधिकतर लोग मानते हैं कि भगवान ने ही इंसानों को गढ़ा है, तो हमें देवी-देवताओं के गढ़न को गौर से देखने का हक है भी कि नहीं…क्या एक देवता को नर और देवी को मादा के रूप में नहीं देखने का योगा करना पड़ेगा।
आपने कभी आठ भुजाओं वाली देवी के चमत्कार देखने के बजाय, क्या इस तरह देखा है कि इस देवी की आठ बाहों वाला ब्लाउज कौन दर्जी सिलता होगा?
कृष्ण जब गोपियों संग रासलीला कर रहे होते हैं तो क्या हम सिर्फ यही सोचते रहें कि यह भगवान की लीला है या गोपियों और राधा के शरीर और भावों पर भी हमारी नजर और दिमाग जा सकता है!
और आज वहीं देवियां आउटडेटेड हो गयी हैं, उनकी जगह बॉलीवुड और हॉलीवुड की सुंदरियों ने ले ली है, रही बात उनसे जुड़े धार्मिक उपदेश की तो लोग देवी-देवताओं से बहुत आगे की सोच रहे हैं और जी भी रहे हैं!
समस्या मकबूल की पेंटिंग में नहीं, उनका विरोध करने वालों की मानसिकता में है।
· (मेरा उद्देश्य मकबूल को सही ठहराना नहीं, बल्कि मुर्खाना विरोध और उसपर की जा रही राजनीति से है)
आपकी बात सुन कर लगता है कि कोई आपकी पत्नी या बहन के मादक उरोजो को आपके सामने घुरता हुआ देखे तो आपको गुस्सा नही आएगे । मै अगर आपकी मां की तस्वीर इस कल्पना के साथ बनाउ कि उन्होने कपडे नही पहन रखे और बाकयादा उसे स्थानीय अखबार मे प्रकाशित करुं तो भी आप यही कहेंगें की आखिर इसमे क्या बुरा है। बुढे मुहम्मद अपनी कमसीन आयशा के कैसे सम्भोग करते थे इस पर एक कामिक्स बनायी जाए तो आप कामिक्स बनाने वाले की यह कर प्रशंसा करेगें की क्या बुरा है इसमे जब इतने पोर्नो छप रहे है । सोचिए जनाब ......
एक हिन्दु को अपनी भावनाओ के साथ खिलवाड करने वालो का शांतिपुर्ण विरोध करे तो आप सहन नही कर पाते । डेनमार्क मे पैगम्बर मोहम्म्द के कार्टुन बनने पर विश्वभर मे सैकडो लोग मुस्लीम-इसाई दंगो एवम उत्तेजक झडप मे मारे गए - कम से कम हिन्दुओ का विरोध का तरीका बेहतर है यह तो आप मान ही सकते है ।
भदेस हिन्दी में एक शब्द प्रचलित है "ठरकी" जो इस तरह के लोगों की व्याख्या करता है। अपनी अपनी माताजी की योनि से बाहर आने के बाद भी उसका दर्शन और चित्रांकन नहीं करते। जिसे जिसे ये सब सूझता है कि राधा में मादा.... तो माता भी मादा....
सही और गलत के अपने अपने पैमाने हैं सबका अपना अपना चश्मा है आपको जो लगा वो आपने लिखा हमें जो लगा वो हमने कमेंट करा.... इतना तो अधिकार है या नहीं????
डॉ रूपेश जी, इसमें गुस्सा होने की बात नहीं है। मेरी बहन-मां से लेकर दुनियां की सारी औरते एक समान हैं। मेरा मकसद किसी की आस्था पर चोट करने का नहीं है, बल्कि आस्था और संबंधों के नाम पर पूरे समाज को अस्वाभाविक बना देने से है।
आशा है ठंढे दिमाग से खुद को और समाज को टटोलेंगे तो मेरी बात बुरी नहीं लगेगी।
कला, धर्म और सेक्स का वास्ता बहुत पुराना है ! इसके हजारों उदहारण हमें खजुराहो से लेकर तांत्रिक कला में देखने को मिलतें हैं ! पर उन सब में वक्तिवादिता कही भी नहीं थी (ये बात सिर्फ हिन्दू धर्म के सन्दर्भ में कह रहा हूँ!) ! इस समाज के इसी व्यक्तिवादी चरित्र के कारण ही इस पर इतनी राजनीती हो पा रही है ! हम ये भी देखतें हैं की इस तरह के कितने ही और उदहारण मौजूद हैं ! लेकिन इस टेस्ट टयूब बेबी के ज़माने में कौन कहाँ से पैदा हुआ ये बात नुमाया करने की कोई जरुरत नहीं है !