Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: ब्लादिमीर की आखिरी किताब

ब्लादिमीर की आखिरी किताब

जो ब्लादिमीर नाबाकोव को जानते है या उनका लिखा सब कुछ पढ़ चुकने का दावा करते हैं उनके लिए एक खबर है। ब्लादिमीर अपने जीवन के अंतिम समय में बीमारी से जूझते हुए अपनी एक कृति जिसे पूरी नहीं कर पाये, शुक्र मनाइये वेरा का जिसके चलते आखिरकार पाठको को "द ओरिजनल ऑफ़ लौरा" पढने को मिल सकेगी। यह सब कुछ इतना आसान नहीं था एक पत्नी की १४ वर्षो की जद्दो-जहद थी, एक पुत्र की दुविधा थी और इन सब के बाद भी स्विस बैंक में रखी यह पांडुलिपियाँ पाठकों एवं मीडिया के जबरदस्त दबाव के बाद आखिरकार प्रकाशित होकर आ रही है।

असल में इस पुस्तक को लेकर पाठकों में काफी कौतुहल है। सभी यह जानना चाहते हैं की आखिर क्या वजह थी की ब्लादिमीर अपने जीवन के अंतिम समय में बेहद कठिनाइयों और बिपरीत परिस्थितियों में लिखी इन पांडुलिपियों को जला देना चाहते थे?

लोलिता ने ब्लादिमीर को ऐसे पटल पर खडा कर दिया जहाँ उनके प्रसंशक थे, छात्र थे, रूस की यादें थी, तितलियाँ थी और नोबेल पुरस्कार था। उनकी आने वाली पुस्तक का उनके प्रसंशको द्वारा बेसब्री से इंतजार किया जाता था।

अभी हाल ही में उनके पुत्र दमित्री ने अपने पिता की अधूरी रह गयी आखिरी कृति को प्रकाशित करने का फैसला किया है। असल में ब्लादिमीर नाबकोव आखिरी वक़्त अपने बीमारी से जूझते रहने के बावजूद अपनी पुस्तक जिसे पहले उन्होंने "डाईंग इज फन" का नाम दिया था, पूरा करने में लगे रहे। वर्ष १९७७ में अपनी ज़िन्दगी के आखिरी समय अपनी पत्नी वेरा से अधूरी रह गयी कृति की पांडुलिपियों को जला देने का आग्रह किया वेरा ने हामी भरी लेकिन उन्हें जलाने का साहस नहीं कर सकी। पेन्सिल से लिखी उन पांडुलिपियों को वह लम्बे समय तक सहेजती रही और वर्ष १९९१ में अपने पुत्र को सौंपकर इस दुनिया से अलविदा हो गयीं। दमित्री ने इन पांडुलिपियों को स्विस बैंक के एक लॉकर में रखा और गाहे-बगाहे उन्हें देखते रहे। दमित्री उन्हें प्रकाशित करना चाहते थे लेकिन पिता की इच्छा के सम्मान में साहस नहीं कर सके। लेकिन जैसे-जैसे पाठकों और मीडिया को इस बात का पता चलता गया वैसे-वैसे इसके प्रकाशन को लेकर विवाद गहराता गया. आखिरकार एक लम्बे अन्तराल और भरी विमर्श के बाद कल इस पुस्तक का विमोचन किया जाना है। ब्लादिमीर के चाहने वालों के लिए मौत के बाद दिया गया यह तोहफा जरूर पसंद आयगा। हालाँकि इस कृति के मूल थीम को लेकर अभी भी रहस्य बना हुआ है। कुछ वर्षों पहले टाईम्स मैगजीन ने एक गद्द-खंड प्रकाशित किया था उसे पढ़कर पाठकों के मध्य यह रहस्य और भी गहरा हो गया है। पाठकों के बीच ऊहापोह की स्थिति है उन्हें लोलिता की तरह एक और अदभूत कृति की तलाश है जहाँ लेखक अन्नाबेल के साथ छूटी हुई रात का सिरा लेकर लोलिता के इर्द-गिर्द घूमती धुंधलके में उलझ गया।

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