Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: कैसे

कैसे

यहाँ हर दिल में है दोज़ख की आग, उसको बुझायें कैसे,
ज़मीन की इस जन्नत को फिर से जन्नत बनाएं कैसे।

पत्थर कश्मीर कि सड़कों पर गिर कर भी घिसते नहीं,
हिन्दुस्तां हर पत्थर से आज़ादी का नाम मिटाये कैसे।

चाहते तो ये हैं कि बदल दें जो खुदा ने तकदीर में लिखा,
पर उसके कागज़ पर उसका हि दस्तख़त हम बनाएं कैसे।

ऐ तेहरीक के अजनबी, जो लब्ज़ लिखे थे तुम्हारी शहादत
के पहले, अब हर उस कसीदे को मर्सिया हम बनाएं कैसे।

फुरसत हो, ऐ नबी, तो फिर से आना हमारी दुनिया में,
ये न सोचना कि इतना होने के बाद अब हम जाएँ कैसे।

ख़त तो तुम लिखने बैठे, अखिल, पर इस वतन में डाकखाने

हि नहीं, अब अपना पैगाम उस मुल्क तक पहुँचवायें कैसे।




akhilkatyalpoetry.blogspot.com

Comments :

3 comments to “कैसे”
नीरज कुमार ने कहा…
on 

कश्मीर के हालिये-सुरत को बयां करती बहुत खूबसूरत प्रस्तुति है
बधाई हो..

Karan ने कहा…
on 

wah

बेनामी ने कहा…
on 

achha prayas hai.

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