Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: ये मिली"भगत"है |

ये मिली"भगत"है |





इडियट शब्द का नितान्त हिंदी अनुवाद है मूर्ख | देश में अभी जो स्थिति चल रही है या चलाई जा रही हैं वैसी स्थति में तो यही सबसे उपयुक्त शब्द जान पड़ता है | वैसे इडियट शब्द का एक और अर्थ जो अभी एक पखवाड़े से ही समझ में आने लगा है वो है होशियार/ समझदार या फिर खबरदार | आप शायद इसे एसे ना स्वीकारें और स्वीकारना भी नहीं चाहिए लेकिन मैं इसे सिद्ध कर दूंगा कि इडियट शब्द के मायने होशियार /समझदार और फिर मूर्ख दोनों ही हैं | राजकुमार हिरानी, विधु विनोद चोपरा और चेतन भगत नाम के तीन इडियट (यहाँ इडियट का अर्थ समझदार से लगायें) जनता को इडियट ( यहाँ इडियट का अर्थ मूर्ख से लगायें) बनाए मैं लगे हैं | इस बोड़मपने का सूत्रधार है आमिर खान | और इसकी मूक दर्शक है जनता |
जरा इस बोड़मपने को शुरू से देखने की कोशिश करते हैं | आमिर खान ने इस फिल्म के प्रमोशन के लिए छिपने-छिपाने का सिलसिला शुरू किया | भेष बदलकर किरदार गढ़े और इधर से उधर भागते फिरे | जनता की रातों की नींद नींद हराम हो गई, हर कोई यही सोच रहा था कि आमिर बस हमारे शहर आ रहे हैं | आमिर पहेली बूझते रहे और पागल जनता उलझ कर रह गई | हर एक ऑटो वाला अपना ऑटो चमका कर खड़ा था कि बस अब तो आमिर आकर उसके ही ऑटो में बैठने वाला है| मीडिया को भी तोडू खबर (ब्रेकिंग न्यूज़) मिल गईं | तो चलने दो दिन रात तोडू पे तोडू खबर |
दूसरा बोड़मपना हुआ प्रीमिएर पार्टी पर | फिल्म इंडस्ट्री के तीनो खान (आमिर ,सल्लू और शाहरुख़) एक साथ एक मंच पर आये | जैसे कि स्क्रिप्ट लिखी गई हो, सल्लू ने शाहरुख़ को घूरा और शाहरुख़ ने सलमान को | इसी तरह आमिर और शाहरुख़नाम के दो छिछोरों ने एक दूसरे को गले लगाया और एक दूसरे के छिछोरेपन मैं कसीदे पढ़े | यह मीडिया के लिए इससे भी बड़ी तोडू खबर रही कि मिले आमिर, शाहरुख़ और सलमान और जनता फिर हैरान !!!! मैंने तो यहाँ तक देखा कि शहरों मैं लड़कियां चिप्स का आधा भाग मुंह में और आधा भाग अन्दर रख कर कह रही थीं कि आईला तीनो एक जगह !!!
तीसरी और अंतिम तोडू खबर रही चेतन भगत का ड्रामा| फिल्म ने पहले सप्ताह में रिकॉर्ड तोड़ व्यवसाय किया| इसका एक कारण तो फिल्म का ठीक-ठाक बन जाना तो था ही, साथ ही सर्दियों के मौसम पर किसानों के चेहरे पर खुशियाँ लाने वाले मावठे की तरह ही क्रिसमस और नव वर्ष की छुट्टियों ने कमाल कर दिया | जीवन की आपाधापी से फ्र्ष्टाऊ जनता ने खूब छक कर देखा और ३ बुध्दू सुपरहिट हो गई, लेकिन कमबख्त दूसरे हफ्ते में कैसे चले ये फिल्म ? बस यहीं से इंट्री हुई चेतनभगत की | चेतनभगत जो लगभग भुला दिए गए थे,इस प्रसंग से फिर वापिस लौटे और फिर लिखी गई एक और स्क्रिप्ट | ड्रामा शुरू हुआ और एक हफ्ते बाद उतरने वाली ३ बुध्दू फिर से पटरी पर आ गई | इस प्रसंग से वह बोद्धिक वर्ग भी उछल कूद मचाने लगा जिसने फाइव पॉइंट समवन (पांच दशमलव/बिंदु कोई) पढ़ी है | और वह अब दोनों की कुंडली मिलान के लिए जा रहा है, इस किताब में क्या है और उस फिल्म में क्या नहीं ?
इस पूरे प्रसंग में मीडिया का एक चरित्र सामने आता है कि वह खूब दूसरों पर छिछालेदारी करे लेकिन जब खुद पर आये तो गाल बजाने लगे | लेकिन इस चौथे स्तम्भ के भीतर की सड़ांध पर कौन बात करेगा मेरे भाई !!!! भगत की कहानी उसने चुरा ली ये तो खबर है लेकिन खुद एक चैनल दूसरे की खबरें उड़ा लेते हैं, उसका क्या ? राजधानी के अखबार में तो उन विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है तो नेशनल डेली से खबरें उड़ाने में माहिर हो | उनका एक सूत्रीय काम है टीपो और चेपों |और ये तो पुनीत काम समझा जाता है | उसकी विशेषज्ञता ही कुशलता से चेंपने पर निर्भर है | दरअसल में यह कहना चाह रहा हूँ की यही तो मीडिया में हो रहा है जो चेतन भगत या विधु के बीच हुआ तो मीडिया इसमें इतना हो हल्ला क्यूँ मचा रहा है ? और यदि यह इतना ही बुरा है तो फिर अपने यहाँ क्यूँ होने देते हैं मीडिया वाले ?
हमेशा से जन सामान्य के अधिकारों के संरक्षण की दुहाई देने वाले मीडिया कर्मियों के अपने अधिकारों का क्या !!! ना समय पर तनख्वाह, ना सम्पादक से जवाब-तलब, अपने ही अखबार में सर झुकाओ और जो बीट (बीट के कई मायने हैं, आप समझदार हैं ) दी गई है,माफ़ करिए लेकिन यहाँ पर विषय की पकड़ मायने नहीं रखती है, उस पर काम करते रहो| यहाँ चूँ-पटाक की भी गुंजाईश नहीं | और रही सही तो स्वर्गीय प्रभाष जी ही उघाड़ कर चले गए कि "खबर बिकती है बोलो खरीदोगे " | मीडिया सोच रहा था कि ये मुद्दा तो उनके साथ ही चला जायेगा लेकिन एडिटर्स गिल्ड के हस्तक्षेप के बाद तो ये और भी परवान चढ़ गया और चढ़ना भी चाहिए |
तो साहेब हम ३ मूर्ख पर थे | स्व. प्रभाष जी के इस सनसनीखेज खुलासे के बाद से तो यही लगता है की जिस रिपोर्टर ने विधु विनोद से सवाल पूछा था वो भी स्क्रिप्ट का हिस्सा रहा हो | लेकिन इस पूरे खेल में यह भी समझ से परे है की जैसा ये तीन समझदार खेल चलते रहे मीडिया भी उसी खेल में उलझता रहा | किसी भी मीडिया ने इस बात को क्यों नहीं उछाला की इसमें रैगिंग को दिखाया गया है और जिससे छात्र देखकर उत्तेजित होंगे और इसके गंभीर परिणाम होंगे ? किसी ने भी मौलिक प्रयोग के नाम पर प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला को खिलवाड़ का विषय बनाने की बात क्यूँ नहीं की ? केवल फिल्म राजकुमार हिरानी की है और इसलिए पूरी मीडिया को सब कुछ "आल इज वेल" ही लगा या किसी को कहीं कोई तकलीफ भी हुई ? यदि नहीं तो मुझे किसी से कुछ नहीं कहना|
बहरहाल इस पूरे खेल में वे तीन-चार या उनकी पूरी जमात तो सफल रही और वे तो समझदार थे और हैं | जो खेल खिलाते रहे और जनता बनती रही मूर्ख | तो प्यारे मोहन आल इज नोट वेल | दरअसल में यह पूरा प्रसंग ही मिली "भगत" है |



Comments :

1
deepak k singh ने कहा…
on 

darasal baat wahi hai jo hum sabhi jaante hain,aur jisko jitna adhik jaana jayega utni hi kashtdayak hogi.

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