मुझे बस इक लोहे का टुकड़ा बना दे, रब,
मैं उसकी बेल्ट का बकल बन जाऊं,
मुझे उसके कमरे का आइना बना दे, रब,
मैं रोज़ उसकी हि शकल बन जाऊं।
मुझे रुकने का इरादा बना दे, ऐ खुदा,
जो मैं आऊँ तो वो खुदा-हाफिज़ कह न सके,
मुझे घुटनों कि नरमी बना दे, ऐ खुदा,
मैं गुदगुदाऊँ, तो वो खुद में रह न सके।
मुझे मेरे यार का मोबाइल फ़ोन बना दे, रब,
मैं उसकी पैंट कि जेब में बैठा गाता रहूँ,
जो डाले कभी वो अपनी शर्ट कि जेब में मुझे,
मैं उसके दिल के करीब युं आता रहूँ।
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बहुत खूब संजय जी .