ये मेरी पहली कहानी है, अपना बहुमूल्य कमेन्ट अवश्य दें। जहा सुधारकी गुन्जायिश हो वो भी बताएं.
बाबुल के प्रीत............
चेहरे पे सदा मुस्कान उसकी पहचान थी, पर आज उसकी मुस्कान कोसों दूर थी उसके चेहरे से। छीन लिया था लोगों ने उसके सबसे प्यारे चीज को, जिसे वो ख़ुद से भी ज्यादा मानने लगी थी।कहा जाता है किइंसान सबसे ज्यादा अपनी माँ को मानता है, माँ ही उसकी सबसे करीबी होती है। वो भी अपनी माँ को बहुत मानती थी, शायद ख़ुद से भी ज्यादा। पर जाने कैसे वो अपने प्रीत भैयाको मानने लगी। कहती कि माँ से भी ज्यादा...ख़ुद से बहुत ज्यादा मानती हूँ आपको प्रीत भैया।याद है शुरुवात के वो दिन, जब वो नाटक सिखने आया करती थी वहीँ पे उसके प्रीत भैया अपने दोस्तों के साथ नाटक सीखते थे। " दीदी " जो हमे नाटक सिखाती थी उन्होने उसका परिचय प्रीत व उसके दोस्तों से करवाया। उसने अपना नाम " बाबुल " बताया। धीरे- धीरे नाटक का रिहर्सल शुरू हुआ वैसे-वैसे बाबुल का अपने प्रीत भैया के प्रति लगाव बढ़ता गया। जाने क्या दिखा जो वो इतना ज्यादा प्रीत को मानने लगी, जबकि दोनों के बिच बातें भी कम या यूँ कहे की होती ही नही थी। ................प्रीत भैया आप मोना से बातें मत कीजिये, वो बोलती है कि आप उसे घूरते रहते हैं......मैं जानती हूँ कि आप ऐसे नही हैं.......वो झूठ बोलती है, इसलिए आज उससे झगडा करके आई हूँ.......मुँह नोच लुंगी उसका अगर वो अब ज्यादा बोलेगी तो। कुछ देर के लिए शांत हो जाने के बाद अचानक बोली, " क्या मैं आपको प्रीत भैया बोल सकती हूँ?" क्यूँ? मेरे नाम में कुछ खराबी है...........नही पर जाने क्यों आपको इसी नाम से बुलाने को जी चाहता है।धीरे-धीरे वो अपने प्रीत भैया के और करीब होती गई, इतनी करीब कि जब तक वो साड़ी बातें कह न लेती तब तक उसे चैन नही आता। घर में जाती तो प्रीत भैया......दोस्तों के बिच प्रीत भैया.......हर जगह उसके जुबान पे रहने लगे थे प्रीत भैया। जो थोड़ा सा भी उसे जानता , उसके प्रीत भैया को बहुत अच्छी तरह से जानने लगा, जैसा उसने सबसे अपने प्रीत भाई के बारे में बताया।कोई लड़की किसी गैर लड़के कि तारीफ कैसे कर सकती है, ये बातें भी उसके जानने वाले सोचने लगे। भाई- बहन के पाक रिश्ते को देखने का नजरिया बदल गया.......धीरे-धीरे सुगबुगाहट होने लगी...लोग कानाफूसी करने लगे । रही सही कसार बाबुल के भाई अमित ने पुरी कर दी। वो बाबुल के प्रीत भैया को जानता था , क्युकी बाबुल के प्रीत भैया अभी के कई ग़लत कामों में खलल daal चुका था। लोगों कि कानाफूसी को उसने बढ़ा-chadhkar अपनी माँ को बताया, ये जानते हुए भी कि बाबुल और प्रीत के बिच rishta ootna ही पाक है, जितना उसके और बाबुल के बिच। पर कोई कैसे bardast कर सकता है कि उसकी अपनी बहन उससे ज्यादा उसके दुश्मन को मानने लगी थी, और उसे ही अपने बड़े भाई के रूप में देखने लगी थी।अमित कि बातें सुन उसके घर waalon ने नाटक सिखने जाने से mana कर दिया और कहा कि wahan सही लोग नही रहते हैं इसलिए abse waha नही jaana है। बाबुल कि बातें किसी ने नही सुनी।अगले दिन चुपके से sidhe collage से वो नाटक सिखने आई और साड़ी बातें batayi .......... पर laachaar उसका प्रीत भैया क्या कर सकता था, जब ये फ़ैसला उसके घर वालों का ही था। दोनों के aankho से सिर्फ़ आंसू ही निकल रहे थे, बाबुल का masoom चेहरा krodhagni से जल रहा था। क्युकी लोगों ने उसके प्रीत भैया को उससे छीन लिया था, और घर वाले भी उसके ही khilaf थे......
बस इतनी सी बात है...
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I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।
II
कुछ मोहब्बतें बिस्त...
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