बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद गठित जांच कमेटी लिब्राहन आयोग की सत्रह वर्श बाद सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट के लीक होने से सनसनी फैल गई है। एक अंग्रेजी समाचार पत्र में छपी खबर के मुताबिक इस रिपोर्ट में भाजपा के कई बड़े नेताओं को 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद षहीद किए जाने के लिए जिममेदार ठहराया गया है। बताया जा रहा है कि रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, एल.के आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, अशोक सिंघल और विनय कटियार का नाम प्रमुख है। रिपोर्ट के मुताबिक बाबरी मस्जिद गिराए जाने के पीछे सोची-समझी रणनीति बनाई गई थी। साथ ही मुसलमानों को भी इस रिपोर्ट में फटकार लगाई गई है।
बाबरी मस्जिद को षहीद हुए 17 साल हो गए हैं, लेकिन जांच आयोग की रिपोर्ट का खुलासा अब हो रहा है। रिपोर्ट को लीक करने वाले अखबार के मुताबिक लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह साफ तौर पर कहा है कि बाबरी मस्जिद को एक सोची समझी योजना के तहत ढहाया गया।
अखबार ने दावा किया है कि लिब्रहान आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में दोषी पाया है। मुख्य बात यह है कि पहली बार वाजपेयी का नाम इस कांड में जोड़ा जा रहा है।
अखबार के अनुसार आयोग का मानना है कि वाजपेयी समेत ये तीनों नेता बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने की योजना में शामिल थे। खबर के मुताबिक आयोग ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और ऑॅल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के कुछ नेताओं को भी अपनी रिपोर्ट में लपेटा है।
इस मामले में वाजपेयी जी अब बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं और अडवाणी जी जरूर इस रिपोर्ट के बहाने अपनी गिनती भाजपा के षहीदों में कराना चाहेंगे। जबकि उमा भारती और कल्याण सिंह इस रिपोर्ट के बहाने भाजपा में अपनी घर वापसी का रास्ता तलाषते नजर आएंगे। साथ ही साथ कल तक कल्याण सिंह के साथ गलबहियां कर रहे मुलायम सिंह भी अब सेक्युलर बनकर ताल ठोंकते नजर आएंगे।
भले ही गृहमंत्री पी चिदंबरम यह आष्वासन दें कि गृह मंत्रालय से किसी ने भी इस बारे में किसी से बातचीत नहीं की है और इसकी एक ही प्रति है और वह पूरी हिफाजत से रखी गई है। लेकिन समझने वाले समझते हैं कि कहीं न कहीं इस रिपोर्ट लीक के पीछे हाथ कांग्रेस और केंद्र सरकार का ही है। क्योंकि बाबरी मस्जिद को षहीद किया जाना कोई छोटी मोटीे घटना नहीं थी। 6 दिसंबर 1992 स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा मोड़ था जिसने भारतीय राजनीति की दिषा ही बदल दी। तब ऐसे मौके पर कांग्रेस भला क्यों भाजपा को इस रिपोर्ट का फायदा उठानें देना चाहेगी? वैसे भी सत्रह साल बाद लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट का कोई बहुत मतलब नहीं रह जाता. आज अपनी रिपोर्ट में अगर लिब्राहन ने किसी राजनीतिक व्यक्ति को इस घटना के लिए षडयंत्र का दोषी माना भी है तो अब इससे क्या होगा? जितने लोगों की गवाही इस आयोग के सामने हुई है उनमें से अधिकांश लोगों पर रायबरेली की कोर्ट में मुकदमा पहले से ही चल रहा है. फिर किसी एक घटना में एक ही व्यक्ति पर दो मुकदमें नहीं चलाए जा सकते. रायबरेली की अदालत से कोई फैसला आने के बाद ही उस पर आगे की कार्रवाई तय होगी. इसलिए इस रिपोर्ट का कोई कानूनी मतलब नहीं रह गया है हां इसके राजनीतिक निहितार्थ जरूर हैं और उन्हें पूरा करने के लिए ही भाजपा और कांग्रेस में युध्द छिड़ा है।
यहां सवाल है कि लिब्राहन आयोग का प्रतिवेदन केंद्र सरकार और स्वयं आयोग के पास था। यह प्रतिवेदन कार्रवाई रिपोर्ट के साथ संसद में पेश किया जाना चाहिए था, लेकिन इससे पहले ही यह मीडिया को लीक कैसे हो गया? अब अगर चिदंबरम सच बोल रहे हैं कि सरकार ने यह रिपोर्ट लीक नहीं की है तो किसने की? क्या गृह मंत्री का इषारा जस्टिस लिब्राहन की तरफ है? तो सरकार उनके खिलाफ क्या कदम उठाएगी? यह मामला इसलिए भी गम्भीर है कि संसद का सत्र चल रहा है और जो रिपोर्ट इस सत्र में पेष की जानी थी उसका मीडिया में लीक हो जाना संसद की तौहीन है और जाहिर है कि इस तौहीन का इल्जाम सरकार पर ही आयद होता है।
अब इस रिपोर्ट पर लाभ कमाने के लिए संघ परिवार में ही सिर फुटौव्वल हो रही है। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने बाल ठाकरे के उन दावों को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि बाबरी मस्जिद को षिव सैनिको ने गिराया था। सिंघल ने तो यहां तक कह दिया कि ठाकरे कभी अयोध्या नहीं गए ही नहीं। बेशक शिवसेना नेता मनोहर जोशी अयोध्या गए थे। सिंघल ने एक तरीके से ठाकरे को कायर करार दे दिया। उधार कल्याण सिंह भी जो अभी कुछ दिन पहले ही छह दिसंबर 1992 के लिए मुसलमानों से माफी मांग रहे थे तुरंत हिन्दू हो जाएंगे और जोर षोर से अपने षहीद होने का बखान करेंगे। बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के समय कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। हालांकि वे लिब्राहन कमीशन के सामने पेश होने से ग्यारह साल तक बचते रहे। उन्होंने इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि आयोग के सामने पेश होने पर सीबीआई कोर्ट में उनके खिलाफ चल रहे मुकदमे पर प्रभाव पड़ेगा। पर कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी तो उन्हें गवाही देने पेश होना पड़ा। तब उन्होंने दावा किया था कि उनकी सरकार ने बाबरी मस्जिद को बचाने के पूरे इंतजाम किए थे लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार ने ऐसी परिस्थिति तैयार की जिससे मस्जिद टूटी।
चाहते तो अब अडवाणी भी होंगे कि वह इस रिपोर्ट का लाभ उठाएं लेकिन उदार दिखने की चाहत में वह आयोग के सामने जो बयान दे बैठे वह उन्हें इसका लाभ लेने से रोकेगा जिसमें उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद तोड़े जाने का दिन उनकी जिंदगी का सबसे दुखदाई दिन था। उन्होंने इस घटना की तुलना 1984 के सिख विरोधी दंगों से करते हुए आयोग से कहा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगे में सिखों के खिलाफ भड़की हिंसा 6 दिसंबर से ज्यादा शर्मनाक थी। अब किस मुंह से अडवाणी इसका लाभ उठाएंगे?
जाहिर है आयोग की रिपोर्ट लीक होने से कांग्रेस को सीधा राजनीतिक फायदा मिलेगा वहीं भाजपा को इस रिपोर्ट से अब कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि अब वह अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर खर्च कर देगी कि रिपोर्ट लीक कैसे हुई? दूसरे अब अडवाणी बूढ़े हो चले हैं और भाजपा अपने अंतर्विरोधाों से ही जूझ रही है। तमाम कोषिषों के बावजूद वह अडवाणी के कद का मास लीडर तैयार नहीं कर पाई है जो कारगिल में हुई फजीहत को भी 'षौर्य' के रूप में भुना ले जाए। इतना ही नहीं रामजन्मभूमि आंदोलन के कारण संघ परिवार की जो एक शक्ति बनी थी वह भाजपा के एनडीए बनकर सरकार बनाने के बाद पूरी तरह से बिखर चुकी है.
दिक्कतें कांग्रेस के सामने भी हैं। संभवत: इस रिपोर्ट में पी वी नरसिंहाराव और कांग्रेस की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। ऐसे में क्यों कांग्रेस ईमानदारी से इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करेगी? नरसिंहा राव ने आयोग को दिए अपने बयान में कहा था कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार के हाथ बंधक बन गई थी। अयोध्या में कारसेवकों की भीड़ बढ़ने के साथ-साथ हालात खराब होते गए। उन्होंने सफाई दी कि केंद्र सरकार के हाथ बंधे हुए थे। राव ने कहा था कि इतिहास उनके साथ न्याय करेगा। लेकिन सवाल यह है कि यह न्याय कैसा होगा जब उनकी पार्टी ही अब दनका नाम लेने से कतराती है?
ताज्जुब इस बात का है कि मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी जो लगातार बाबरी मस्जिद की कमाई खाती रही है, भी इस रिपोर्ट के आने पर चुप लगा गई थी क्यों कि तब कल्याण सिंह उसके साझीदार हो गए थे और मुलायम सिंह ने तो यहां तक कह दिया था कि बाबारी मस्जिद का मुद्दा अब पुराना पड़ गया है। लेकिन अब फिर सपा को भी इस रिपोर्ट के बहाने बाबरी मस्जिद याद आने लगेगी।
कुल मिलाकर कांग्रेस ने इस रिपोर्ट को लीक कराकर एक बार फिर बाजी मार ली दिखती है। क्योंकि हाल फिलहाल में कहीं चुनाव भी नहीं होना है और लोकसभा चुनाव भी दूर हैं साथ ही अभी भाजपा इसी उलण्न में फंसी हुई है कि अडवाणी जी को अपना नेता माने या न माने और अगर इसका कुछ फायदा अडवाणी जी के खाते में जाता भी है तो उससे भाजपा को कोई लाभ नहीं होना है। दूसरी तरफ उत्तार प्रदेष जहां कांग्रेस इस समय चौतरफा लड़ाई लड़ रही है वहां उसे फायदा होगा क्योंकि वह मुलायम सिंह जो कल तक कह रहे थे कि बाबरी मस्जिद का मुद्दा पुराना पड़ गया है और कल्याण सिंह दोशी नहीं हैं चह अब किस मुह से लिब्राहन की रिपोर्ट पर हाय तौबा मचाएंगे?
अमलेन्दु उपाध्याय
बस इतनी सी बात है...
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I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।
II
कुछ मोहब्बतें बिस्त...
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