पर वह कुहरा नहीं था
वह तो जिन्दगी और मौत के बीच की धुंध थी
आज तक बहता है आंखों से पानी
मोमबत्ती की रोशनी भी नहीं पी पाती हैं, ये आंखें
शोपीस से पैदा होते हैं बच्चे
लाखों आंखों में ऐनक हैं
जिनमें रह-रह कर दिखती हैं, 3 दिसंबर की काली रात
काश वो कुहरा ही होता .............. !!
त्रासद तो यह है कि
हम जान की बाजी लगाकर भी दर्शक ही रहे
नहीं बन पाये हिस्सा, इस खेल का
त्रासद तो यह भी है कि, हम अभी भी कुहरे में ही जी रहे है !!
बस इतनी सी बात है...
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I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।
II
कुछ मोहब्बतें बिस्त...
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