साथियों चिन्मय भाई ने सूचना के अधिकार पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं की हत्याओं के सम्बन्ध मैं एक विचारोत्तेजक आलेख लिखा है | आप सब के बीच मैं रख रहा हूँ |
समय की मुठभेड़ों ने ईजाद किया है मुझको,
मैं चाकू हूँ, आंसुओं में तैरता हुआ......।
चन्द्रकांत देवताले
सूचना का अधिकार कानून के सहारे गुजरात के गिर के जंगलों में अवैध खनन् के खिलाफ संघर्ष करने वाले 33 वर्षीय अमित जेठवा की हत्या के साथ इस वर्ष के पहले सात महीनों में सूचना का अधिकार कानून के कार्यकर्ताओं की हुई हत्याओं की संख्या 8 तक पहुंच गई है। अमित जेठवा की 20 अक्टूबर को अहमदाबाद उच्च न्यायालय परिसर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस वर्ष 3 जनवरी को सतीष शेट्टी की पुणे महाराष्ट्र, 11 फरवरी को विश्राम लक्ष्मण् डोडिया की अहमदाबाद, गुजरात, 14 फरवरी को शशिधर मिश्रा, बेगुसराय, बिहार, 26 फरवरी को अरुण सावंत, बदलापुर महाराष्ट्र 11 अप्रैल को सोला रंगाराव, कृष्णा जिला आंध्रप्रदेष, 21 अप्रैल को विठ्ठल गीते, बीड जिला महाराष्ट्र और 31 मई की दत्ता पाटिल, कोल्हापुर महाराष्ट्र की भी नृषंस हत्याएं कर दी गई थीं।
उपरोक्त सभी हत्याओं के संबंध में संबंधित राज्य सरकारों का एक रटा-रटाया जवाब है, 'मामले की जांच चल रही है। हम शीघ्र ही दोषी को पकड़ लेंगे।' गौरतलब है कि जिन 8 आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है, उनमें से दो कार्यकर्ताओं सतीष शेट्टी और विश्राम लक्ष्मण डोडिया ने तो संबंधित राज्य सरकारों से पुलिस सुरक्षा की भी मांग की थी, जिस पर सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया? नतीजा सबके सामने है। इसके अलावा पिछले 7 महीनो में देश भर में आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं पर 20 गंभीर प्राणघातक हमले भी हुए हैं।
इन घटनाओं ने अक्टूबर 2005 से अस्तित्व में आए सूचना का अधिकार कानून के खतरनाक पक्ष को सामने ला खड़ा किया है। इनमें यह संदेश भी जा रहा है कि भारत में कानून का इस्तेमाल सिर्फ शासन और प्रशासन जनता के खिलाफ कर सकता है। अगर जनता सूचना का अधिकार कानून के माध्यम से किसी को कटघरे में खड़ा करना चाहती है तो उसका हश्र भी देख लो। इस संदर्भ में भारत में मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह का कहना है, 'सूचना का अधिकार कानून का प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखने लगा है, जो लोग सूचना को बाहर नहीं आने देना चाहते वे खतरनाक तरीके अपना रहे हैं।'
सवाल यह उठना है कि अंतत: सूचना कौन-कौन दबाना चाहते हैं? इसमें सिर्फ वे गैर सरकारी व्यक्ति नहीं हैं, जो अपने विरुध्द संभावित कार्यवाही से घबराकर हत्या तक करने से बाज नहीं आ रहे हैं। दुख की बात है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं को सरकारी उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ रहा है। पिछले वर्ष से दिल्ली स्थित पब्लिक काज रिसर्च फाउंडेशन ने सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए एक राष्ट्रीय पुरस्कार देने की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता आसाम के अखिल गोगोई को भ्रष्टाचार के मामले सामने लाने की सजा के बतौर कई बार जेल भी जाना पड़ा था। देशभर में ऐसे अनगिनत मामले सामने आ रहे हैं।
देश का शासन, प्रशासन, उद्योग वर्ग, बाहुबली, भू-माफिया आदि यह बात हजम ही नहीं कर पा रहे हैं कि उनसे कोई कुछ पूछ भी सकता है। प्रधानमंत्री के स्तर पर इस कानून में बदलाव की पैरवी होने से इन तत्वों के हौंसले एकाएक बढ़ते नजर आ रहे हैं। आजादी के 6 दशक बाद पहली बार जनता को पूछने का हक मिलने से वह काफी संतोष का अनुभव कर रही थी। परंतु इन हिंसक वारदातों के माध्यम से उनका मनोबल तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इस बीच उत्तरप्रदेश के सूचना आयुक्त ब्रजेश कुमार मिश्रा ने एक शिकायतकर्ता रामसेवक वर्मा के खिलाफ पुलिस जांच के आदेश दिए हैं। सूचना आयुक्त का मानना है कि यह व्यक्ति सरकारी अधिकारियों को परेशान करता है। अब इसके बाद और क्या कहा जा सकता है?
इस संदर्भ में एक और घटना पर गौर करना आवश्यक है। मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में जागृत आदिवासी दलित संगठन, महात्मा गांधी नरेगा, स्वास्थ्य सेवाओं में अनिमितताओं, राशन दुकानों से खाद्य वितरण जैसी समस्याओं के संबंध में कई बार आरटीआई के माध्यम से जानकारी लेकर और कई बार सीधे भी संघर्ष करता है। आदिवासियों का संघर्ष पूर्णत: शांतिपूर्ण होता है। इसलिए प्रशासन उनके विरुध्द ज्यादा सख्त धाराएं लगाने में असमर्थ रहता है। आदिवासियों में बढ़ती जागरूकता को दबाने के लिए अंतत: प्रशासन ने अपने हथकंडे अपनाए और इस संगठन के प्रमुख कार्यकर्ता वालसिंह को लूट और लकड़ी की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इस प्रकार भ्रष्टाचार का विरोध करने वाला स्वयं ही अपराधी करार कर दिया गया। यही वास्तविक भारतीय शासनतंत्र है।
यह लेख लिखते-लिखते ही समाचार मिला कि उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले के कटघर गांव का रहने वाला विजय बहादुर उर्फ बब्बू सिंह जो लखनऊ में होमगार्ड में पदस्थ था, उसने अपने गांव में हो रहे निर्माण में बरती जा रही अनिमितताओं को लेकर आरटीआई के अंतर्गत आवेदन दिया था। इस बार जब वह गांव में आया तो संबंधित पक्षों ने 27 जुलाई को उसकी हत्या कर दी। इस तरह इस साल हत्याओं का यह आंकड़ा 9 तक पहुंच चुका है। पुणे महाराष्ट्र में मारे गए सतीश शेट्टी ने 10 वर्ष पूर्व पुणे मुम्बई एक्सप्रेस-वे परियोजना में हुए भूमि सौदों में भ्रष्टाचार उजागर किया था। वर्तमान में वे एक कंपनी द्वारा धोखाधड़ी करके अधिग्रहित की गई 1800 एकड़ भूमि से संबंधित दस्तावेजों को शासन से प्राप्त करने में प्रयासरत थे। वही बब्बू सिंह इसके मुकाबले बहुत छोटे भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करना चाहते थे। परंतु दोनों को अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ा।
आरटीआई कार्यकर्ता आम आदमी की तकलीफों को समझते हुए स्वयं को एक हथियार में परिवर्तित कर रहे हैं। सेना में संघर्ष के दौरान हुई मृत्यु को 'सर्वोच्च बलिदान' की संज्ञा दी जाती है। हम सबके लिए संघर्ष करने वालों के बलिदान को क्या इससे 'कमतर' आंका जा सकता है? मगर यह हम सबका दुर्भाग्य है कि इन कार्यकर्ताओं की असामयिक मृत्यु अभी भी 'हत्या' की श्रेणी तक ही पहुंची है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे ये कार्यकर्ता 'शहीद' हैं और उन्होंने देशहित में 'सर्वोच्च बलिदान' दिया है। इन कार्यकर्ताओं की शहादत देखकर श्रीकांत की ये पंक्तियां याद आ रही हैं,
मैं अपनी पीठ पर
अपनी कब्र के
पत्थर सा
ढोता
संसार !
- चिन्मय मिश्र
आप "सर्वोदय प्रेस सर्विस" के सम्पादक हैं |
बस इतनी सी बात है...
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I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।
II
कुछ मोहब्बतें बिस्त...
आर.टी.आई. वह हथगोला है जिसे पिन निकालने के बाद, महज कालर खड़े किए रखने के लिए, गोदी में लिए नहीं फिरते रहना चाहिये.
बहुत ही दुर्भाग्यजनक और शर्मनाक स्थिति है ,RTI कानून में स्पष्ट प्रावधान है की अगर कोई सूचना देने के रास्ते में बाधा उत्पन्न करता है तो वह सजा का हक़दार है लेकिन आज तक किसी को इसके लिए सजा नहीं होना और RTI कार्यकर्ताओं की हत्या तथा दयनीय अवस्था को देखते हुए ये कहा जा सकता है की इस कानून को अप्रभावी बनाने की उच्च स्तरीय साजिश चल रही है | इस साजिश को सिर्फ और सिर्फ देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के ईमानदारी भरे हस्तक्षेप से की नाकाम कर RTI कानून को मजबूत बनाया जा सकता है | हम सभी बलोगरों को भी अपने ब्लॉग लेखन के जरिये इसके लिए प्रयास करना चाहिए | आपने यह पोस्ट लिखकर बहुत ही सार्थक ब्लोगिंग का परिचय दिया है ,धन्यवाद आपका और उन सभी शहीद RTI कार्यकर्ताओं को हमारा सलाम जिन्होंने पारदर्शिता के लड़ाई में देश और समाज के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी |