स्वर्ग में अधिकार अपार हैं और कर्तव्य नहीं के बराबर। भोग के एक से एक उत्तम साधन भी वहाँ मुफ़्त में सुलभ हैं। रमण के लिए चारों ओर रमणीक वातावरण भी है। ऐसी आम जनों की धारणा है। इस संबंध में मेरी अवधारणा से अवगत होने के निम्न मुक्तक पढ़िए।
"चेन्नई में पहुँचना, गुलमर्ग में पहुँचना।
उपसर्ग में पहुँचना, संसर्ग में पहुँचना॥
सारी पहुँच के ऊपर बस एक पहुँच यारो-
सुवर्ग में पहुँचना, है "स्वर्ग" में पहुँचना॥"
बस इतनी सी बात है...
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I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।
II
कुछ मोहब्बतें बिस्त...
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