अब दिल्ली सरकार के निशाने पर किसी तरह दो वक्त की रोटी कमा रहे ऑटोरिक्शा चालक हैं। सरकार कथित 55 हजार ऐसे चालकों को दिल्ली से खदेड़ने की पूरी तैयारी में है। वजह बताई जा रही है कि ये रिक्शा चालक सड़क पर जाम लगाते हैं। अव्यवस्था फैलाते हैं। सरकार को ऑटो से लगने वाला जाम नज़र आता है लेकिन हर रोज सड़कों पर उतर रही हजारों लंबी-लंबी कारें जाम की वजह नहीं लगतीं। चूंकीं ये कारें आम आदमी की नहीं हैं। ये सरकार के साथ सत्ता और उसकी नीतियों से सबसे ज्यादा नफे में रहने वाले और मलाई चाटने वाले चुनिन्दा लोग हैं। ये लोग सरकार के निशाने पर कैसे हो सकते हैं? सबसे आसान टारगेट तो कमजोर वर्ग है।
सरकार के गुण्डे पुलिसवालों ने कनाट प्लेस के जनपथ मार्केट में पटरियों पर दुकान लगाकर गुजारा करने वाली महिलाओं से रोजी छीन ली तो वे 20 मार्च को बीच सड़क पर बैठ गईं और रोरोकर अपना दर्द लोगों को बताने लगीं। किसी के पास वक्त नहीं था कि उनकी बातें सुने। दिक्कत इस बात से थी उनकी वजह से रोड़ जाम हो गया है। इनकी वजह से उनका वीकेण्ड खराब हो रहा है। बाद में महिला पुलिस ने सबको खदेड़ दिया। दिल्ली सरकार रोज-बरोज कुछ न कुछ ऐसा कर रही है।
कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ कहकर सत्ता में आई कांग्रेस आम आदमी के पेट पर लात मारने और उसे दिल्ली और दुनिया से रूखसत करने पर अमादा है। हजारों भिखारियों को ठिकाने लगा चुकी है और बचे हुओं को ठिकाने लगाने का काम जोरों पर है।
दिल्ली में सरकार की नाक का सवाल बन चुके कॉमनवेल्थ खेल होने हैं। सरकार को दिखाना है कि वह कितनी काबिल है जिसने इसे ठीक से करवा लिया है। विदेशियों को चकाचक और भीडमुक्त सड़कें दिखानी हैं। बताना है कि दिल्ली कितनी सुंन्दर है। कितनी साफ़ है। ये वर्ल्डक्लास शहर से किसी मायने में कम नहीं है। इसकी गन्दगी (गरीब और आम आदमी) को एमसीडी की तरह कूडे़ के ट्रक के तरह शहर से दूर फिंकवा रही है। वैसे उसका बस चले तो वह दिल्ली को साफ सुधरा बनाने के लिए इन लोगों को अरब सागर में फिंकवा दे।
आजकल केन्द्र सरकार भी अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दे रही है। लोगों को बता रहा है कि माओवादी कितने खतरनाक और खूंखार हैं। ये देश के मध्यवर्ग को हकीकत से दूर रखकर माओवादियों के प्रति नफरत फैलाने का प्रचार और सरकारी पाखण्ड है। सरकार का अब तक इस बात का एहसास नहीं हुआ कि माओवाद समस्या नहीं विचारधारा है जो उसकी गलत नीतियों की उपह है। ऑपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर वह इस विचारधारा को समस्या बताकर खत्म करने पर कृतसंकल्प है। सरकार को कौन बताए कि हिंसा से विचारधाराएं खत्म नहीं बल्कि और उग्र होती हैं।
बस इतनी सी बात है...
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I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।
II
कुछ मोहब्बतें बिस्त...
आजकल केन्द्र सरकार भी अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दे रही है।