'शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मिटने वालों का येही बाकी निशाँ होगा' शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के ये शब्द भले ही कुछ देर से याद आये लेकिन आये हैं। और ये केवल शायद मेरे साथ ही नहीं हुआ होगा। कुछ ऐसे भी होंगे जिन्हें याद भी रहा होगा। तो क्या फिर अगर शहीद दिवस आया। यूँ भी न जाने कितने ही दिवस आते जाते रहते हैं। कहाँ तक कोई उन्हें याद रखे।एहले वतन खुश है और हमारा सफ़र भी जारी है। जब हर तरफ खुशहाली है, चैन है, विकास है, उन्नति है, रोटी है, पानी है, मुफ्त इलाज, इन्शुरन्स,गाडी, बीवी-बच्चे,इत्यादि हैं वहां शहीद दिवस मनाने की या शहीद दिवस को याद रखने की किसे पड़ी है?
लेकिन इधर सुनते हैं की तुनिशिया,मिस्त्र, यमन, लीबिया आदि मुल्कों में इस दिवस को याद किया गया है , मनाया है। खबर है या अफवाह पता नहीं। हमे क्या लेना जी ।
वैसे खबर ये भी है-शायद अफवाह हो, कि देश के दूरदराज इलाकों में, जो दिल्ली से दूर हैं, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु,चंद्रशेखर, बिस्मिल व कई अन्य नामों के व्यक्तियों कि तलाश चल रही है, उन्हें वहां देखा गया है।
दांतेवाडा में जो कुछ अभी कुछ दिन पहले हुआ वो उसी धर पकड़ का नतीजा है।
इसी धर पकड़ में कुछ इस किस्म के स्वर भी सुनाई दिए- " निसार मैं तेरी गलियों के एय वतन के जहाँ चली है रस्म के कोई न सर उठा के चले ..... "
लेकिन इधर सुनते हैं की तुनिशिया,मिस्त्र, यमन, लीबिया आदि मुल्कों में इस दिवस को याद किया गया है , मनाया है। खबर है या अफवाह पता नहीं। हमे क्या लेना जी ।
वैसे खबर ये भी है-शायद अफवाह हो, कि देश के दूरदराज इलाकों में, जो दिल्ली से दूर हैं, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु,चंद्रशेखर, बिस्मिल व कई अन्य नामों के व्यक्तियों कि तलाश चल रही है, उन्हें वहां देखा गया है।
दांतेवाडा में जो कुछ अभी कुछ दिन पहले हुआ वो उसी धर पकड़ का नतीजा है।
इसी धर पकड़ में कुछ इस किस्म के स्वर भी सुनाई दिए- " निसार मैं तेरी गलियों के एय वतन के जहाँ चली है रस्म के कोई न सर उठा के चले ..... "
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