मैं अपने हाथ में रखता हूं अब चाबी मुकद्दर की ।
ये दौलत भी मेरे अजदाद ने मुझको थमाई है ।।
वो होंगे और जो मुश्किल में तुमको देखके चल दें ।
मेरे मां बाप ने मुझको अलग आदत सिखाई है ।।
दे देंगे जान लेकिन बाज हम फिर भी न आएंगे ।
ये ज़िद मेरी अभी तक की उमर भर की कमाई है ।।
मैं हूं जिस हाल में खुश हूं मुझे छेड़ो न तुम ज्यादा ।
ये दौलत जो तुम्हें बख्शी गई हमने लुटाई है ।।
सफर में जो गए बाहर वो फिर वापस नहीं लौटे ।
कि हमने गांव में टिककर ही ये इज्जत बनाई है ।।
हमारे साथ तू न थी तो यही अंजाम था मेरा ।
बताओ हाल-ए-दिल मेरा तुम्हें किसने सुनाई है ।।