कहा जा रहा है कि काइट्स की कहानी राकेश रोशन ने आसमान में कुछ पतंगों को उड़ते देख कर मन में लिख ली थी. वह कहानी बहुत अच्छी है लेकिन सौभाग्य से दिक्कत यह है कि वह अच्छी कहानी सिर्फ़ फिल्म के शुरूआती 30 से 40 सेकेण्ड में खत्म हो जाती है और दुर्भाग्य से उसके बाद फिल्म में कहानी नाम की चिड़िया उड़ती ही नहीं . हम यहां मान कर चलते हैं कि किसी भी फिल्म में कहानी ही सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है बाकी बातें उसके बाद....
फिल्म में चूंकि कहानी है ही नहीं इसलिये हम अबोध दर्शक अन्य चीज़ों पे बातें करेंगे .बातें करेंगे क्योंकि और कुछ नहीं कर सकते। विदेशों में न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबारों और रोटनटोमैटो जैसी बेहतरीन वेबसाइट्स पर फिल्म के लिये जितनी शानदार समीक्षाएं लिखी जा रही हैं, उसमें हम सिर्फ अपनी कम अक्ल का रोना रो सकते हैं या उसे बढ़ाने के लिये रामगोपाल वर्मा की आग या फूंक जैसी टॉनिकनुमा फिल्मों का सहारा ले सकते हैं . इसमें कुछ कर नहीं सकते। फिल्म में कहानी के साथ-साथ अच्छे संगीत की भी ज़बरदस्त गुंजाइश थी जो सिरे से गायब है . राकेश रोशन ऐसे निर्देशक के रूप में जाने जाते रहे हैं जो कम से कम आगे की सीट वाले दर्शकों को भरपूर मनोरंजन देते रहे हैं . उनका इस रूप में भी मूल्याङ्कन किया जाय कि वह मसालेदार और मनोरंजक फिल्में बनाते हैं तो वह पूरी तरह से नाकाम नज़र आते हैं . उनकी पिछली फिल्में क्रिश कोई मिल गया और थोड़ा और पीछे जाएं तो करन अर्जुन अच्छी टाइम पास थी और एक खास तरह का मनोरंजन करने वालों के लिये पूरी तरह से मुफ़ीद थीं। इस फिल्म के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसका टारगेट ऑडियंस कौन है, यह न तो निर्माता को पता है न ही निर्देशक को . यह फिल्म किसके लिये बनायी गई है . फिल्म के एक्शन दृश्यों की बड़ी चर्चा है और वह निसन्देह बहुत सी विदेशी फिल्मों की कॉपी होने के बावजूद अच्छे हैं तो यहां पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब फिल्म इंग्लिश और स्पेनिश में है तो राकेश उस महाआम दर्शक को तो टारगेट आडियंस नहीं ही मान रहे हैं जो उनकी कोयला और करन अर्जुन जैसी फिल्मों के एक्शन दृश्यों पर ताली पीटता था तो उनका टारगेट आडियंस विदेशी दर्शक इससे बढ़िया एक्शन दृश्यों के लिये वह क्यों न हॉलीवुड के ही एक्शन दृश्य देखे जहाँ से उठा कर ये दृश्य यहाँ रखे गए हैं. करन अर्जुन में भी एक्शन था लेकिन वह कहानी से इस कदर जुड़ा हुआ था कि जब छत पर छिपे गांव वाले ईंट पत्थर और सामान फेंक कर अमरीश पुरी और अन्य खलनायकों को मारते हैं तो दर्शकों को यह ध्यान भी नहीं आता कि ये स्टंट बहुत आसान हैं और इनके लिये किसी बड़े विदेशी फाइट डायरेक्टर की जरूरत नहीं है . ज़ाहिर है एक्शन भी तभी मजा देता है जब वह कहानी के साथ जुड़ा हो. यहां फिर वही दिक्कत है कि जब कहानी ही नही तो जुड़ाव कैसा...?
सिनेमेटोग्राफी फिल्म का सबसे शानदार पहलू है और कुछ तथाकथित अनछुये लोकेशन फिल्म में बड़े प्यारे लगते हैं और वहां संगीत की बड़ी बढ़िया संभावना बनती थी लेकिन फिल्म की टीम दूसरी इंटरनेशनल चीज़ों में इतनी व्यस्त थी कि इस ओर ध्यान नही नहीं दे पायी और राकेश रोशन कि पिछली फिल्मों की तुलना में इस फिल्म का संगीत पासंग भी नहीं है।
फिल्म के सबसे ज्यादा प्रचारित किये जा रहे पक्ष सबसे कमज़ोर हैं और इसमें सबसे पहली चीज़ है अभिनेता और अभिनेत्री की केमेस्ट्री जो कि बिल्कुल उत्साहजनक नहीं है। असंवेदनशील हत्याओं और सिर्फ भागने और पीछा करने वाली इस फिल्म में अगर कोई गौर करने लायक बात है तो यह कि इतनी बोर करने वाली फिल्म में आप पूरी फिल्म देखने के लिये बैठे कैसे रह जाते हैं . रितिक का अभिनय ? नहीं, उनसे आप हर बार शानदार अभिनय और शानदार नृत्य की उम्मीद लेकर जाते ही हैं . उन्होंने बहुत भावप्रणय और बढ़िया अभिनय किया है और पूरी फिल्म को माइ नेम इज़ खान में जैसे शाहरूख अपने उम्दा अभिनय से उतनी तर्कहीन और बकवास फिल्म को खींच ले जाते हैं, वह भी लेकर चलने की कोशिश करते हैं. लेकिन पूरी फिल्म हॉल में दो सौ की टिकट लेकर जाने के बाद घबराकर भागने की इच्छा होने के बाद भी कोई नहीं भागता तो यह अनुराग बसु का निर्देशन है जो आपको बिठाये रखता है. वह खराब कहानी के बावजूद और बिना कहानी के भी आपकों कुछ देर बिठाने की क्षमता तो रखते ही हैं, यह उन्होंने साया से साबित कर दिया था. अनुराग इस महंगी फिल्म, जो कि बिना किसी ठोस कारण के महंगी है, के असली नायक हैं और गले लगाकर बधाई दिये जाने के हकदार हैं . अभिनय की बात करें तो रितिक के दोस्त की भूमिका में जागो विज्ञापन से चर्चा पाने वाले आनन्द तिवारी ने सबसे सहज और उम्दा अभिनय किया है।
इस फिल्म से एक अच्छी बात हो सकती है कि रितिक की पहुंच अब हॉलीवुड के साथ-साथ स्पेन और अन्य कई देशों के दर्शकों के दिलों पर राज कर सकते हैं। मेरे जैसे कुछ दर्शकों को ज़रूर शुरू से ही लगता रहा है कि रितिक की तैयारी, उनका व्यक्तित्व उनकी सम्पूर्णता और उनका अभिनय भारतीय दर्शकों के लिहाज से कुछ ज्यादा ही है . हम इतने परफेक्ट चीज़ें देखने के आदी नहीं हैं। हमारे लिये ऐसा नायक जो बेटर दैन द बेस्ट है, वह बड़े मार्केट में पहुंचेगा और अन्य देश भी उसकी प्रतिभा से परिचित होंगे। विदेशी पैसे के अलावा पापा रोशन का दूसरा मकसद भी यही रहा होगा .
हां एक बात जो फिल्म देखते वक्त आ रही थी कि यार डब फिल्म को हिन्दी बता कर क्यों दिखवा दिया ? अभी छूटते छूटते एक पत्रकार मित्र ने बताया है कि बिहार के किसी वितरक ने राकेश रोशन ओर बिग पिक्चर्स पर इसी कारण को लेकर केस कर दिया है।
देसी दर्शकों को चूतिया समझते हुये विदेशी माल खींचने की कोशिश करती हुयी एक और दुखी करने वाली फिल्म . किसी विद्वान ने अभी कहा है कि इस फिल्म को देखने से बेहतर है कि आप घर पर कुछ पतंगें लाकर उड़ा लें . यह कहने के बाद मैं पतंगे लेकर छत पर उड़ाने जा रहा हूं . आप भी उड़ा ही लीजिये .
-विमल चन्द्र पाण्डेय
बस इतनी सी बात है...
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I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।
II
कुछ मोहब्बतें बिस्त...
kites ki bagdoor to rakesh roshan aur anuraag bashu k haath me hai
per us kites ki asli pehchaan aap ko hai
ki wo aasmaan me kitna uper tak ja skti hai
thanks broooooooo
for such a beautiful blog
thanks
sumitsethi2009@gmail.com
I found 'kites' mere wastage of valuable time. aapki tippani pahle parh li hoti to main bhi chhat par kites urhaane chali jaati. khuli hava to milti.
Film dekhane ke baad se hi main patang uda raha hoon. saari pocket money doston sang foonk daala! kash pahle ye padh liya hota!badhiya!
बकवास आलोचना, इतनी भी बुरी फिल्म नहीं है!
"देसी दर्शकों को चूतिया समझते हुये विदेशी माल खींचने की कोशिश करती हुयी एक और दुखी करने वाली फिल्म"
इस तरह कि बेहूदी और अश्लील भाषा का प्रयोग ना करें तो बेहतर होगा!
i have not seen the movie...........but review padne ke baad dekhne ki koshish bhi karna ek chaalnge hoga.........
roshan khandan ko usaki aukat batati hai yah lekh
roshan khandan ko usaki aukat batati hai yah lekh......bahut sundar likha hai aapane vimal.....badhai sweekar kare....................shashi shekhar
विमल भाई एक विरले समीक्षक हैं जिनकी समीक्षाओं में शरद जोशी की याद दिलाता हुआ व्यंग्य होता है. हमने अभी तक यह फिल्म देखी नहीं है लेकिन अब अगर देखने बैठेंगे तो फिल्म हमारे लिए कॉमेडी सरीखी हो जायेगी. गलत न समझें, हमारा कहने का अर्थ है कि अब तो फिल्म देखते हुए दिल-ओ-दिमाग पर उनकी चुटीली टिप्पणिया ही चाईन रहेंगी जो चेहरे पर कभी मुस्कान लायेंगी तो कभी ज़ोरदार ठहाकों के रूप में बाहर निकलेंगी. विमल जी इस बात के लिए शाबाशी के हक़दार हैं कि उन्होंने बड़े विनम्र तरीके से मशहूर विदेशी अखबारों की अच्छी खबर ली है जो कई बार अपने अजीबो-गरीब मूल्यांकनों से स्तब्ध कर देते हैं. उम्मीद है कि विमल जी की पतंग हमेशा यों ही उडती रहेगी.
इतना तो स्पष्ट है कि जिन प्राणियों के लिए यह फिल्म बनाई गयी है,वह कहीं और भले ही बसते हों पर भारत में तो कतई नहीं.समीक्षा पढ़कर मजा आ गया.पर पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि थोड़ी- बहुत ही थोड़ी सी और संतुलित समीक्षा होती तो धारदार शब्दों से बिंधने के बावजूद कुछों को मर्मांतक पीड़ा तो नहीं होती.
फिर भी बहुत खूब गुरू.
agar movie achhi nahi lagi to kisi ko riyayat nahi milni chahiye....good review !!!
Maine jada comment nahi kar sakta Kites par kyoki mujhe movie dekhte samay neend aa gayi thi !!
..VIVEK
worst movie i hav seen ever.. Hrithik ROCKS
hritik ki awaited film thi islie dekhne ko soch raha tha lekin dekhkar dukhi nahi hona chahta....
good review
सुना है कि फिल्म के दौरान लोगों को नींद से जगाये रखने के लिए subtitles का प्रयोग किया गया है, लेकिन छोटे शहरों में ये नुस्खा काम नही कर पाया। इस फिल्म को बॉलीवुड की अब तक की सबसे बड़ी रिलीज मानी जा रही है। यह फिल्म देश के 2,300 सिनेमा घरों के साथ-साथ अमेरिका, यूके, यूएई, आस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रिका सहित 30 देशों में रीलिज कि जा रही है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मकसद आगे बैठने वाला या आम दर्शक नही है बल्कि विदेशी पूंजी है।
विमल थोडा सावधान रहिएगा किसी दिन अगर ये रोशन बंधु आप को मिल गए तो आपकी खैर नही.