-- -डॉ० डंडा लखनवी
कर रहे थे मौज-मस्ती जो वतन को लूट के।
रख दिया कुछ नौजवानों ने उन्हें कल कूट के।।
सिर छिपाने की जगह सच्चाई को मिलती नहीं,
सैकडों शार्गिद पीछे चल रहे हैं झूट के।।
तोंद का आकार उनका और भी बढता गया,
एक दल से दूसरे में जब गए वे टूट के।।
मंत्रिमंडल से उन्हें जब किक लगी, ऐसा लगा-
आशमा से भू पे आये बिन वे पैरासूट के।।
ऊंट समझे थे बुलन्दी में न उनसा कोई भी,
पर्वतों के सामने जा होश गुम हैं ऊंट के ॥
शाम से चैनल उसे हीरो बनाने पे तुले,
कल सुबह आया जमानत पे जो वापस छूट के।।
फूट के कारण गुलामी देश ये ढ़ोता रहा-
तुम भी लेलो कुछ मजा अब कालेजों से फूट के।।
अपनी बीवी से झगड़ते अब नहीं वो भूल कर-
फाइटिंग में गिर गए कुछ दाँत जबसे टूट के।।
फोन पे निपटाई शादी फोन ही पे हनीमून,
इस क़दर रहते बिज़ी नेटवर्क दोनों रूट के॥
यूँ हुआ बरबाद पानी एक दिन वो आएगा-
पाँच सौ भी कम पड़ेंगे साथियों दो घूंट के।।
फूट के कारण गुलामी देश ये ढ़ोता रहा-
तुम भी लेलो कुछ मजा अब कालेजों से फूट के।।
बस इतनी सी बात है...
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I
कुछ मोहब्बतें बिस्तर में सिमटती हैं,
कुछ रूह में उतरती है,
और कुछ बस खामाखाँ होती हैं,
क्या ही होता जो
मेरी रूह तेरा बिस्तर होती।
II
कुछ मोहब्बतें बिस्त...
bahut sunder kavita.
हा..हा..हा..बहुत बढ़िया..."
बहुत बढ़िया
ACHA HE
शाम से चैनल उसे हीरो बनाने पे तुले,
कल सुबह आया जमानत पे जो वापस छूट के।।
वाह वाह!! बहुत खूब!!
bahut accha.
maja aa gaya padhkar!
डॉ० डंडा लखनवीजी
हास्य व्यंग्य के बहाने बहुत जिम्मेवारी के साथ सधे हाथों से लेखनी चलाई है आपने ।
पूरी हज़ल शानदार कही है ।
क्या हक़ीक़तबयानी है…
"शाम से चैनल उसे हीरो बनाने पे तुले,
कल सुबह आया जमानत पे जो वापस छूट के।।"
और , पानी की महत्ता बताता और
भविष्य के लिए चेतावनी देता हुआ यह शे'र …
"यूँ हुआ बरबाद पानी एक दिन वो आएगा-
पाँच सौ भी कम पड़ेंगे साथियों दो घूंट के।।"
वाहजी बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार