Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: तेरा युं चले जाना भी तो इक निशाँ होगा

तेरा युं चले जाना भी तो इक निशाँ होगा

तेरा युं चले जाना भी तो इक निशाँ होगा

मेरा औरों को चाहना भी तो इक निशाँ होगा,

और जो अबस उदास रहा था मैं इतने दिन

युं हल्के से मुस्कुराना भी तो इक निशाँ होगा।


बात फिर से इस ज़माने से मैं करने लगा

तेरी नज़रों के पहर से मैं उभरने लगा,

जो गए दिन मैं दोस्तों से छूटा-छूटा सा था

युं फिर ये दोस्ताना भी तो इक निशाँ होगा।


वक्त कैसा जो उम्मीद का दूसरा नाम न हो

सज़ा कैसी जो फिर बन्दों पर रहमान न हो,

फिर से लिखने लगा जो मैं तेरी बातों के सिवा

कभी-कभी तुझे भूल जाना भी तो इक निशाँ होगा।


उस तरह कि मोहब्बत फिर कहाँ से कर पाऊंगा मैं,

इस शहर में अब दूसरा हि खेल आज़माऊंगा मैं,

ऐसा नहीं कि फिर बात कभी तुझसे करूंगा नहीं

बस अभी न कर पाना भी तो इक निशाँ होगा।



akhilkatyalpoetry.blogspot.com

Comments :

1
संजय भास्‍कर ने कहा…
on 

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद

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