Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: अंधरे समय के विरुद्ध, मुश्किलों से जूझती रोशनी के लिए आईये एक दीप जलाएं

अंधरे समय के विरुद्ध, मुश्किलों से जूझती रोशनी के लिए आईये एक दीप जलाएं

एक दो भी नहीं छब्बीस दिये

एक इक करके जलाये मैंने

इक दिया नाम का आज़ादी के
उसने जलते हुये होठों से कहा
चाहे जिस मुल्क से गेहूँ माँगो
हाथ फैलाने की आज़ादी है

इक दिया नाम का खुशहाली के
उस के जलते ही यह मालूम हुआ
कितनी बदहाली है
पेट खाली है मिरा, ज़ेब मेरी खाली है

इक दिया नाम का यक़जिहती के
रौशनी उस की जहाँ तक पहुँची
क़ौम को लड़ते झगड़ते देखा
माँ के आँचल में हैं जितने पैबंद
सब को इक साथ उधड़ते देखा

दूर से बीवी ने झल्ला के कहा
तेल महँगा भी है, मिलता भी नहीं
क्यों दिये इतने जला रक्खे हैं
अपने घर में झरोखा न मुन्डेर
ताक़ सपनों के सजा रक्खे हैं

आया गुस्से का इक ऐसा झोंका
बुझ गये सारे दिये-
हाँ मगर एक दिया, नाम है जिसका उम्मीद
झिलमिलाता ही चला जाता है

-कैफ़ी आज़मी

Comments :

5 comments to “अंधरे समय के विरुद्ध, मुश्किलों से जूझती रोशनी के लिए आईये एक दीप जलाएं”
VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…
on 

bahut hee marmik rachna,,,badhayi

mehzabin ने कहा…
on 

इक दिया नाम का यक़जिहती के
रौशनी उस की जहाँ तक पहुँची
क़ौम को लड़ते झगड़ते देखा
माँ के आँचल में हैं जितने पैबंद
सब को इक साथ उधड़ते देखा
hakeekat ko baya kartee sundar rachna

इस्मत ज़ैदी ने कहा…
on 

behtareen !!!!!!!!!!!!

mridula bhardwaj ने कहा…
on 

ye sirf kaifi ji hi likh sakte hai...........

नीरज कुमार ने कहा…
on 

sahi kaha

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