Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: डायन

डायन

डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दांतों से,
छीन-गरीबों के मुहं का है, कौर दुरंगी घातों से।
जिस तरह से एक समय में फिरंगी सरकार डायन थी उसी तरह से आज महंगाई डायन हो गयी है. उस फिरंगी सरकार और वर्तमान सरकार के बीच कई दशकों का फासला है लेकिन अभिव्यक्ति के स्वर और उनके आयाम नही बदले. आखिर इस सरकार और महंगाई के लिए कोई पुरुष उपमा भी तो दी जा सकती थी ?

यह पहली बार नही है जब डायन शब्द का इस्तेमाल समाज में व्याप्त किसी बुराई को दर्शाने के लिए किया गया हो. रांगेय राघव ने फिरंगी सरकार की फितरत बताने के लिए डायन का इस्तेमाल किया था लेकिन आज इस दौर में जब डायन प्रथा निरोधी अधिनियम को लागू किया जा रहा है वहां महंगाई को डायन का रूप देने से स्त्री की पहचान और छवि को गहरा आघात लग सकता है.

हमारे देश में जादू-टोना करने वाले पुरुष को ओझा कहा जाता है जिसको समाज में सम्मान की नज़रों से देखा जाता है लेकिन वहीँ ऐसी महिलाओं को डायन कहा जाता है और डायन की छवि ऐसी बन गयी है की वह किसी को भी अपने जादू-टोने से ख़तम कर सकती है पीपली लाइव के शब्दों में-सखी सैयां तो खूबे कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है. इस गाने की लोकप्रियता एक तरफ तो महंगाई की मार झेल रहे लोगों की आवाज बन रही है दूसरी तरफ उन सैकड़ों महिलाएं जिनका डायन के नाम पर पुरुष समाज शोषण कर रहा है उनके शोषण को बढ़ावा भी दे रहा है जो की सीधे-सीधे एक कुप्रथा और अन्धविश्वास को बढ़ावा देना है 

जिस तरह से एक समय में फिरंगी सरकार डायन थी उसी तरह से आज महंगाई डायन हो गयी है. उस फिरंगी सरकार और वर्तमान सरकार के बीच कई दशकों का फासला है लेकिन अभिव्यक्ति के स्वर और उनके आयाम नही बदले. आखिर इस सरकार और महंगाई के लिए कोई पुरुष उपमा भी तो दी जा सकती थी ? सवाल सिर्फ इतना ही नही है बल्कि मानसिकता का है. असल में हमारे पुरुष-प्रधान समाज ने अपने मतलब की खातिर डायन की ऐसी छवि विकसित की है जो गाँव के लोगों पर काला जादू करती है और उन्हें अपने वश में कर लेती है और उनसे अपना मनमाना काम कराती है लेकिन सच्चाई कुछ और है बिहार-झारखण्ड में हर साल सैकड़ों महिलाएं इसकी शिकार बनाई जाती है, किसी को नंगाकर गाँव में घुमाया जाता है, किसी को पेंड से बाँधकर पीटा जाता है, किसी को जिंदा जला दिया जाता है  और कितनो की तो मार-मारकर हत्या कर दी जाती है. 

Comments :

4 comments to “डायन”
बेनामी ने कहा…
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जनाब निजाम बदल गए है , लेकिन हालत नहीं बदले,
पहले अंग्रेज लुटते थे अब नेता लुटते है ..... अच्छा लेख है
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/

ओशो रजनीश ने कहा…
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सही कहा आपने ....... अच्छा लिखा है

Ajay Yadav ने कहा…
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admiyat Zinda hai......

नीरज कुमार ने कहा…
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mari kab thi??
nazar walon ki aankhe dekh nahi pa rahi thi

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