Visit blogadda.com to discover Indian blogs कठफोड़वा: मण्टो तो पैदा ही मरने के बाद हुआ

मण्टो तो पैदा ही मरने के बाद हुआ

ये लेख तो मण्टो की तारीफ़ करने के लिए लिखा गया है और ही उसकी भत्सना के लिए। ये उस शक्श को अपनी यादो में जिन्दा रखने की कोशिश है। जो साहित्य की दुनिया में धूमिल होता जा रहा है। क्योंकि मण्टो उर्दू अदब का अकेला शक्श है जिसने जिन्दगी के ज़हर को खुद धेल कर पिया है और फ़िर उस के रंग को खोल-खोल कर बयान किया है। ये मानने की जरूरत नहीं है बल्कि इसे जानने की जरूरत है।
मण्टो अपनी साफगोई और बेबाकी के कारण चर्चित भी रहे और विवादास्पक भी। अविभाजित और विभाजित भारत में उन को कहानियों पर कानूनी कार्यवाहियां भी हुई। उन्हें कई बार आदलतों के चक्कर भी लगाने पडे़। उन पर अश्लील लेखन का इल्ज़ाम लगा तो प्रगतिशील लेखकों ने उन्हें प्रतिक्रियावादी घोषित कर दिया। मण्टो का कहना था कि `मैं अफ़साना नहीं लिखता, हकीक़त यह है कि अफसाना मुझे लिखता है।´ और वह मानते थे कि `दुनिया को समझाना पहीं चाहिए, उस को खुद समझना चाहिए´ कहानी कला मे उन की मान्यता थी कि `अदब या तो अदब है, वरना एक बहुत बड़ी बेअदबी है´
मण्टो की सबसे बड़ी ख़ासियत थी कि उन्होंने समाज में साधारण समझे जाने वाले लोगों की असाधारण मूल्य-निष्ठा को अपने अंदाज में बयान किया। जो उनकी कहानियां काली शलवार, ठण्डा गोस्त, बू, धुआं , खोल दो में साफ तौर से महसूस किया जा सकता है। वैसे तो हर लेखक की अपनी शैली होती है। परन्तु मण्टो का लिखने का अंदाज सबसे विचित्र और रहस्यमय है। यह अंदाजा मण्टो कि इन पंक्तियों से लगाया जा सकजा है `जमाने के जिस दौर से हम गुज़र रहे है, अगर आप उस से वाकिफ नहीं तो मेरे अफ़साने पिढये और अगर आप इन अफ़सानों को बरदाश्त नहीं कर सकते तो इस का मतलब है कि ज़माना नाक़बिले-बरदाश्त है।´
यह कहना गलत नहीं होगा कि मण्टो को वास्तविकता को कहानियों में कहने में माहारत हासिल थी। वह अपनी कहानियों में समाज में फैली विडम्बनाओं को नग्गा कर देते थे। जिस की वजह से तरक्की पसन्द लेखकों ने उसे अपने से अलग कर दिया क्योंकि अन्यथा मण्टो से बड़ा यथार्थवादी कथाकार और कौन है। बाबू गोपीनाथ का यह अंश देखिये- `रण्डी का कोठा और पीर का मज़ार, बस से दो जगह है जहां मेरे मन को शान्ति मिलती है।.........कौन नहीं जानता कि रण्डी के कोठे पर मां-बाप अपनी औदाल से पेशा कराते है और मक़रबों और तकियो में इंसान अपने खुदा से।´
मण्टो की कहानियों में टोबा टेक सिंह उनकी सबसे चर्चित और उन्दा कहानी में से है। टोबा टेक सिंह में विडम्बना-मुक्ति की सार्थकता इस में है कि उसे पढ़ते हुए हम समझने लगते है कि वास्तविक पागल कौन है- टोबा टेक सिंह या हम सब। यह कहानी, इस प्रकार विभाजन से पीड़ित किसी व्यक्ति के नहीं, बल्कि एक पूरी क़ौम के पागल हो जाने की विडम्बना से रू-बरू कराती है। मण्टो ने इसी तरह अपनी कहानियों के माध्यम से सामाजिक और मानवीय विडम्बनाओं को प्रस्तुत किया है। पाकिस्तानी आलोचक सलीम अख्तर के इस कथन से अंत करना चहुंगा- `जरूरत है ऐसे सिरपिफरे की जो खिड़की खोलने की हिम्मत रखता हो। आज का युग अपना मण्टो पैदा करने में असफल रहा है। इसलिए केवल सआदत हसन मण्टो की आज जरूरत है, बल्कि पहले से भी अधिक शिद्दत से............

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